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________________ श्रीविंशतिकाप्रकरणे ॥ १४ ॥ सुपरिसुद्धं ॥ १४ ॥ कायफरिसरूवेहिं सहमणेहिं च इत्थ पवियारो । रागा मेहुणजोगो मोहुदयं रइफलो सव्वो ।। १५ ।। एयस्साभावमिवि नो बंभमणुत्तराण जं तेसिं । बंभ ण मणोवित्ती तह परिसुद्धा सयाभावा ।। १६ ।। बंभमिहं बंभचारिहिं वन्नियं सव्वमेवऽणुट्ठाणं । तो तम्मि खओवसमो सां मणवित्ती तहिं होइ ॥ १७ ॥ एवं परिसुद्धासयजुत्तो जो खलु मणोनिरोहोऽवि । परमत्थओ जहत्थं सो भण्णइ बंभमिह समए ॥ १८ ॥ इय तंतजुत्तिनीईह भावियन्वो बुहेहिं सुत्तत्थो । सव्वो ससमयपरसमयजोगओ मुक्खकंखीहिं ॥ १९ ॥ संखेवेणं एसो जइधम्मो वनिओ अहमहत्थो । मंदमइबोहणट्ठा कुग्गहविरहेण समयाओ ॥ २० ॥ इति यति- " धर्म्मविंशिका एकादशमी ॥ ११ ॥ सिक्खा इमस्स दुविहा गहणा सेवणगया मुणेयव्वा । सुत्तत्थगोयरेगा बीयाऽणुडाणविसयत्ति ॥ १ ॥ जह चक्कवट्टि रज्जं लडूणं नेह खुद्दकरियासु । होइ मई तह चैव उ नेयस्सवि धम्मरज्जवओ ॥ २ ॥ जह तस्स व रज्जतं कुव्वतो वच्चए सुहं कालो । तह एयस्सवि सम्मं सिक्खादुगमेव धन्नस्स ॥ ३ ॥ तत्तो इमं पहाणं निरुवमसुहहेउभावओ नेयं । इत्थवि होइगसुहं तत्तो देवो उपसमसु ॥ ४ ॥ सिक्खादुग॑म पीई जइ जायइ हंदि समणसीहूस्स । तह चकवट्टिणोऽवि हु नियमेण न जाउ नियंकिच्चे ॥ ५ ॥ गिहइ विहिणा सुत्तं भावेणं परममंतरूवत्ति । जोगोवि बीयमहुरोदजोगतुल्लो इमस्सत्ति ॥ ६ ॥ पत्तं परियाएणं सुगुरुसगासाउ कालजोगेण । उद्देसाइकमजुयं सुत्तं गेज्झति गहणविही ॥ ७ ॥ एमुच्चिय दाणविही नवरं दाया गुरूथ एयस्स | गुरुसंदिट्ठो वा जो अक्खयचारित्तति ॥ ८ ॥ अत्थग्गहणे उ एसो विन्नेओ तस्स तस्स य सुयस्स । तहूं चैव भावपरियागजोगओ आणुपुच्चीए ॥ ९ ॥ मंडाल निसिज्ज सिक्खा किकम्मुस्सग वंदणं जिट्ठे । उवओगो संवेगो ठाणे |पसिणे य इच्चाइ || १० || आसेवइ य जहुत्त तहा तहा सम्ममेस सुत्तत्थं । उचियं सिक्खापुब्वं नीसेस उवहिपेहाई ॥ ११ ॥ १२ शिक्षा विंशिका ॥ १४ ॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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