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बीज
विशिका ५
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श्रीविंशति
बीजाइकमेण पुणो जायइ एसुत्थ भव्वसत्ताण । नियमा ण अन्नहावि उ इट्ठफलो कप्परुक्खुव्व ॥ १ ॥ बीजंविमस्स कात्रकरणालणेयं दट्टणं एयकारिणो जीवे । बहुमाणसंगयाए सुद्धपसंसाइ करणिच्छा ॥ २ ॥तीए चेवाणुबन्धो अकलंको अंकुरो इहं
नेओ । कट्ठ पुण विन्नेया तदुवायनेसणा चित्ता ॥ ३ ॥ तेसु पवित्ती य तहा चित्ता पत्ताइसरिसिगा होइ । तस्संपत्तीइ पुष्पं गुरुसंजोगाइरूवं तु ॥ ४ ॥ तत्तो सुदेसणाईहिं होइ जा भावधम्मसंपत्ती । तंफलमिह विनेयं परमफलपसाहगं नियमा ॥५" बीजस्सवि संपत्ती जायइ चरिमंमि चेव परियट्टे । अच्चंतसुंदरा जं एसावि तओ न सेसेसु ॥६॥ न य एयम्मि अणंतो जुज्जइ नेयस्स नाम | कालुत्ति । ओसप्पिणी अणंता हुँति जओ एगपरियट्टे ॥७॥ वीजाइया य एए तहा तहा संतरेयरा नेया। तहभव्यत्तक्खित्ता एगंत
सहावऽवाहाए ॥ ८॥ तहमव्वत्तं जे कालनियइपुव्वकयपुरिसकिरियाओ। अक्खिवइ तहसहावं ता तदधीणं तयंपि भवे ॥९॥ |एवं जेणेव जहा होयव्वं तं तहेव होइत्ति । नय दिव्वपुरिसगारावि हंदि एवं विरुज्झंति ॥ १०॥ जो दिब्वेणक्खित्तो तहा तहा हंत
पुरिसगारुत्ति । तत्तो फलमुभयजमवि भण्णइ खलु पुरिसगाराओ॥११॥ एएण मीसपरिणामिए उजं तम्मि तं च दुगजण्णं । | दिव्वाउ नवरि भण्णइ निच्छयओ उभय सव्वं ॥ १२ ॥ इहस्सऽणक्खित्तो सो होइत्ति अहेउओ निओएण । इत्तो तदपरिणामो किंचि तम्मत्त न तया ॥ १३ ॥ पुचकयं कम्म चिय चित्तविवागमिह भन्नई दिव्यो । कालाइएहिं तप्पायणं तु तह पुरिसगारुत्ति | ॥ १४ ॥ इय समयनीइजोगा इयरेयरसंगया उ जुज्जंति । इह दिव्वपुरिसगारा पहाणगुणभावओ दोवि ॥ १५॥ ता बीजपुव्वकालो नेओ भवबालकाल एवेह । इयरो उ धम्मजुव्वणकालोऽविह लिंगगम्मुत्ति ॥ १६ ॥ पढमे इह पाहन्नं कालस्सियरम्मि चित्तजोगाणं । वाहिस्सुदयचिकिच्छासमयसमं होइ नायव्वं ॥ १७ ॥ बालरस धूलिगेहातिरमणकिरिया जहा परा भाइ । भवबा