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________________ श्रीविंशति तप्पुग्गलाणमेव य तहा २ हुँति गहणाओ॥३॥ तह तग्गझसहावा जइ पुग्गलमो हवंति नियमेण । तह तग्गहणसहावो आया ४ चरमावकाप्रकरणे य तओ उ परियट्टा ॥४॥ एवं चरमोऽधेसो नीईए जुज्जई इहरहा उ । तत्तस्सहावखयवज्जिओ इमो किं न सव्वोऽवि ? ॥ ५॥ त्तर्विशिका तत्तग्गहणसहावो आयगओ इत्थ सत्थगारेहिं । सहजो मलुत्ति भण्णइ भव्यत्तं तक्खओ एसो ॥६॥ एयस्स परिक्खयओ तहा २ हंत किंचि सेसम्मि । जायइ चरिमो एसुत्ति तंतजुत्तिप्पमाणमिह ॥ ७ ॥ एयम्मि सहजमलभावविगमओ सुद्धधम्मसंपत्तं । | हेतेयरातिभावे जंन मुणइ अन्नहिं जीवो ॥८॥ भमणकिरियाहियाए सत्तीऍ समण्णिओ जहा बालो। पासइ थिरेऽविउ चले भावे जा लाधरइ सा सत्ती ॥ ९ ॥ तह संसारपरिब्भमणसत्तिजुत्तोऽवि नियमाचेव । हेएवि उवाएए ता पासइ जाव सा सत्ती ॥१०॥ जह तस्सचीविगमे पासइ पढमो थिरे थिरे चेव । बीओवि उवाएए तह तब्बिगमे उवाएए ॥ ११॥ तस्सत्तीविगमो पुण जायइ कालेण चेव नियएण । तहभन्बत्ताइ तदनहेउकलिएण व कहिंचि॥१२॥ इय पाहनं नेयं इत्थं कालस्स तओ २(तत्तओ) चेक । तस्सत्तिविगमहेऊ सावि जओ तस्सहावत्ति ॥ १३ ॥ कालो सहाव नियई पुवकय पुरिसकारणेगंता । मिच्छत्तं ते चेव उ समासओ हुंति सम्मत्तं ॥ १४ ॥ नायमिह मुग्गपत्ती समयपसिद्धावि भावियव्यंत्ति । सर्वसुवि सिद्धत्तं इयरेयरभावसाविक्खं ॥१५॥ तह-| भव्वत्तक्खित्तो जह कालो तह इमंति तेणंति । इय अन्नुनाविक्खं रूवं सव्वेसि हेऊण ॥ १६ ॥ न य सव्वहेउतुल्लं भवत्तं हंदि, | सबजीवाणं । जं तेणेवक्खित्ता तो तुल्ला दंसणाईया ॥ १७ ॥न इमो इमेसि हेऊ न य णातुल्ला इमेण एयंपि । एएसि तहा हेऊ माता तहभावं इमं नेयं ॥१८॥ अचरिमपरियट्टेसुं कालो भवबालकालमो भणिओ। चरिमो उधम्मजुव्वणकालो तह चित्तभेडात्ति।१९।। एयम्मि धम्मरागो जायइ भब्वस्स तस्सभावाओ । इत्तो य कीरमाणो होइ इमो हंत सुद्धत्ति ॥२०॥ इति चरिमपरियविंशिका।
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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