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________________ वीये श्रीयशोदे-पडिवज्जइ वियप्पमेत्तेण उस्सुगो संतो। अहवा सुत्तं भणिउं ससक्खिगं चेव थिरचित्तो ॥११॥ जिणबिंबसक्खिगा विधिद्वारं वा ठवणायरियस्स अहव पच्चक्खं । गिण्हइ पचक्वाणं जं करणिज्ज तहिं काले ॥१२॥ पच्छा गुरुसंजोगे विशुद्धिद्वारं प्रत्या सयंगिहीयं पुणोऽवि तप्पुरओ। गुरुसक्खिगत्तहेर्ड पडिवज्जइ पुबनीतीए ॥ १३ ॥ गुरुसामग्गीअभावे सम्म ख्यान पालेइ जं सयंविहियं । परमुस्सुगत्तगहियं सयमेव पुणो कुणइ विहिणा ॥ १४ ॥ केवलमिह चउभंगो जाणतो स्वरूपे. जाणगस्स पासम्मि । बीओ अयाणमाणो गिण्हइ जाणतगसमीवे ॥ १५ ॥ तइयम्मि जाणमाणे गिण्हा पासे ॥२॥ अयाणमाणस्स । चरिमे अयाणमाणो अयाण माणात मूलम्ति ॥ १६ ॥ एत्थ य पढमो सुद्धो सम्मन्नाणस्स तत्थ भावाओ। विरईए नाणं चिय सुद्धीए कारणं जेणं ॥१७ ।। बीए जाणावेडं ओहेणाहारविगइमाईयं । देज्जा पच्चक्खाणं इहरा दोण्हवि मुसावाओ ॥ १८॥ तइए गुरू अजाणं जेठो भाया व माउलाई वा। गुरुपूहउत्ति काउं तस्स उ पूया कया होउ ॥ १९ ॥ अप्पत्तियं च एयरस वज्जिय होउ कारणेणेवं । गिण्हइ पच्चक्खाणं इहरा दोसो अगीयम्मि ॥ २० ॥ जो पुण सयं न याणइ गिण्हइ पासे अयाणमाणस्स । सो सयमंधो लग्गइ मग्गे अन्नस्स अंधस्स ॥ २१ ।। इय नाऊणं सम्म जाणंतो जाणगस्स पासम्मि । कुज्जा पच्चक्खाणं मोक्खफलं जेण | त होइ ॥ २२॥ भणियं गहणविहाणं संखेवेणं सुयाणुसारेणं । इहि छब्बिहसुद्धिं तह चेव भणामि एयस्स ॥ २ ॥ ४॥ २३ ॥ दा. १ ।
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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