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________________ श्रीयशोदेवी प्रत्या ख्यान स्वरूपे. ॥ ३ ॥ सा पुण सहहणे जाणणे य विणणुभासणे तह य । अणुपालणम्मि भावे छव्विहसुद्धी मुणेयब्वा ॥ २४ ॥ पच्चक्खाणवियारं सयलं सद्दहइ तह य जो मुणइ । तस्स उ पच्चक्खाणं सद्दहणाजाणणासुद्धं ॥ २५ ॥ जं काउं किइकम्मं दरोणओ पंजलीऽभिमुहवयणो । गिण्हइ पच्चक्खाणं तं भण्णइ विणयसुद्धं तु ।। २६ ।। अणुभासह गुरुवयणं अक्खरपयवंजणेहिं परिसुद्धं । गुरुसहलहुयसद्दो तं जाणऽणुभासणासुद्धं ॥ २७ || पच्चक्खइ वोसिरई एयं नवरं गुरू समुच्चरइ । सोसो पच्चक्खामित्ति वोसिरामित्ति भासे ॥ २८ ॥ तथा-पच्चक्खाया सूरी पंचविहायारधारगो गीओ । सीसं पडुच्च जम्हा आहारनिसेहणं कुणइ ॥ २९ ॥ पञ्चखावितो पुण सोसो समुवट्टिओ सयं चैव । नियगाहारनिसे हे पउंजई गुरुजणं जेण । दा ॥ ३० ॥ अणुपालणाविसुद्धं आवइपत्तोऽवि जमणुपालेइ । सम्मं अचलियचित्तो तययं उवओगओ चेव । दा ||३१|| जं नो कोहा माणा माया लोभा भया व सोगा वा । नो जसकित्तिनिमित्तं नो पूयागारवनिमित्तं ॥ ३२ ॥ इहपर लोग संसारहिओ जं कुणइ निज्जराहेउं । इंदियवियाविरओ भावविशुद्धं तयं नेयं ॥ ३३ ॥ जं पुण को हाइस उम्मत्तो वावि सुमिणमज्झे वा । गिण्हइ पंच्चक्खाणं तं न पमाणं सुहराणं ॥ ३४ ॥ अन्नं मणम्मि कार्ड अन्नं वायाए कुगइ जं सहसा । तत्थवि मणं | माणं न पमाणं वंजणच्छलणा || ३५ ।। इय सुद्धीहिं विशुद्धं पञ्चक्खाणं भगति मोक्लंगं । एयाहि अपरिसुद्धं विवरीयं तं मुणेयव्वं ॥ ३६ ॥ भणियं विशुद्विदारं सुत्तविषारंति संपयं भणिमो | नवकार माइयाणं कमेण सुत्ताणुसारेणं ॥ ३७ ॥ दा. २ । विशुद्धिद्वारं सूत्रविचार द्वारं ॥३॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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