SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री यशोदेवीये प्रत्या ख्यान स्वरूपे ॥ २६ ॥ कचं पच्चक्खाणं इमं च मे सगड़ं । भक्खत्ताए पत्तं कहं अहं निययवायाए ।। ३१६ ।। चइऊण साहुपुरओ नियवयणं लोविऊण भक्खमि ? । इय चिंतिय तं सगडं परिहरई सो दिओ सहसा ।। ३१७ ॥ मुणिवयणजायसद्धो नरवइधूयाए बोहणानीमित्तं । सयलं नियवृत्तंतं कहेइ तीए सवित्थारं ।। ३१८ ॥ सयपालणत्तिदारं सपसंग वन्नियं अओ वोच्छं । पच्चक्खाणस्स फलं समासओ सुत्तनिहिं ॥ ३१९ ।। एयं पच्चक्खाणं विसुद्धभावस्स होइ जीवस्स । चरणारा हणजोगा नित्र्त्राणफलं जिणा बिंति ।। ३२० ॥ पच्चक्खाणेण जिया थेवेणवि भावणाए चिन्नेणं । पावेंति सुहसमिद्धिं दामन्नगसत्तवइणोव्व ॥ ३२१ || दामन्नग कुलपुत्तो वहविरहं पालिऊण दढचित्तो । तरिऊण आवयाओ जाओ भोगाण आभागी ।। ३२२ ।। अमुणियफल सत्तपए निवइकलत्तं च कायमंसं च । चइऊणं सुरलोए उबवन्नो सत्तवइओऽवि ।। ३२३ ।। पच्चक्खाणेण मुणी तवोविसेसेहिं चित्तरूवेहिं । नाणाविहारद्वीए सणंकुमारोव्व पार्श्वेति ॥ ३२४ ॥ पच्चक्खाणेण जिओ आसवदारस्स निग्गहं कुणई। संवरिया सवदारो कम्मेहिं न बज्झए कहवि ।। ३२५ ।। पच्चक्खाणेण तवो तवेण कम्माण निज्जरा होइ । निज्जरितकम्मकवओ जीवो पावेइ परमपयं ।। ३२६ ।। पच्चक्खाणामेणं सेविऊण भावेण जिणवरुद्दिद्धं । पत्ता अनंतजीवा सासयसोक्खं लहुं मोक्खं ।। ३२७ || आवस्सयपंचासयपणवत्थुयविवरणाणुसारेणं । पच्चक्खाणसरूवं भणियं जसएवसूरीहिं ॥ ३२८ ॥ पच्चक्खरगणणाए गंथपमाणं स्याणि चत्तारि । नयणव सुरुद्द माणो ( ११८२ ) विक्रमनिववच्छरो एत्थ ।। ३२९ ॥ ॥ इइ सिरिज सोएवसूरिसुत्तियं पच्चक्खाणसरूवं सम्मत्तं ॥ ग्रन्थाग्रम् ४०० ।। शकटो दाहरणं प्रत्याख्या नफले दामन्नकाद्याः ॥ २६ ॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy