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________________ श्री यशोदेवीये प्रत्या ख्यान स्वरूपे ॥ २५ ॥ ॥ ३०० ॥ उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासियं तयं भणियं । तह पालियं तु असई सम्मं उवओगपडियरियं ।। ३०१ ॥ गुरुदाणसेसभोयण सेवणयाए उ सोहियं जाण । पुन्नेऽवि थेवकालावत्थाणा तीरियं होइ ॥ ३०२ ॥ भोयणकाले अमुर्ग पच्चक्खायंति भुंज किट्टिययं । आराहिय पगारेहिं सम्ममेएहिं निट्ठवियं ॥ ३०३ ॥ फासियपमुहपयाणं भणियत्थाणंपि इह पुणो भणणं । मंदमइ सुमरणत्थं बहुसत्थपसिद्धिओ चेव ।। ३०४ ।। आह किमयं संते पञ्चक्वेयम्मि अह असंतम्मिः । जइ संते तो जुत्तं साहीणे चागजोगाओ || ३०५ || आहु असंते एवं सर्वपि संढस्स बंभयारितं । तो विजमाणविसयं पञ्चक्खाणं हवइ सहलं ||३०६ || (आचा० ) बज्झाभावेवि इमं पञ्चक्रवतस्स गुणकरं चेव । आसवनिरोह भावा आणाआराहणाओ य || ३०७ || न य एत्थवि एगंतो सगडाहरणाइ एत्थ दिहंतो | संतंपि नासह लहुं होइ असंतंपि एमेव ॥ ३०८ ||सगडोया (डस्सा) हरणं पुण किर केणइ माहणेण गीयत्थ । मुणिपुंगवपयमूले नाणाविहगोयरे नियमे ॥ ३०९ ॥ पडिवज्जंते बहुए तहाविहे माणवे निएऊणं । निग्गोयरत्ति अहला निय | मा इइ मन्त्रमाणेणं ॥ ३१० ॥ उवहासवुद्धिण च्चिय निव्विसयपि हु हवेज्ज जइ सहलं । पच्चक्खाणं मज्झवि सफलं होउत्ति भणिऊणं ।। ३११ ।। जावज्जीवंपि इओ सगडं मे सव्वहा न भोक्तव्वं । नियमो एवंरूवो गहिओ साहू| पच्चखं || ३१२ || तस्सऽन्नया कयाई कंतारुत्तिन्न हाकलंतस्स । एगा नरवधूया अववसणकए पयत्तेण ॥ ३१३ ॥ उद्भूलियजंघजुयं अप्पुत्र्वं माहणं पलोहंती । पक्कन्नमयं सगडं वियरइ पत्तीए काऊण || ३१४ || तो सो तं दट्टणं चिंतह साहहिं सोहणं भणिय । अस्संभविवत्थूणवि कहिंचि जह संभवो होइ ।। ३१५ ।। तो सव्वमेव स प्रत्याख्याने शुद्धयः विषयश्च ।। २५ ।।
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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