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श्री यशोदेवीये
प्रत्या
ख्यान
स्वरूपे
॥ १६ ॥
गोमहिसिउहि अयएलगाण वीराणि पंच चत्तारि । दहिमाईया जम्हा उट्टीणं ताणि न हु होंति ॥ ९७४ ॥ चत्तारि हुति तेल्ला तिलअयसिकुसुंभसरिसवाणं च । विगईओ सेसाई महुयफलाईण नो विगई ॥ १७५ ॥ दवगुडपिंड - गुडा दो मज्जं पुण कट्ठपिट्ठनिष्पन्नं । मच्छियकोत्तियभामरभेयं च तिहा महुं होइ ॥ १७६ ॥ जलथलखहयरमंसं चम्मं वस सोणियं तिहेयंपि । आइल्लतिन्नि चलचल ओगाहिमगा य विगईओ ॥ १७७ ॥ चलचलसदेविया नेहोगाहेण जे उ पच्चति । ओगाहिमगा नेया वडगाई खज्जगविसेसा ।। १७८ ॥ तिन्हं घाणाण परओ एए विगई न हुंति जइ न खिवे । अन्नंपि तत्थ नेहं तो ते कप्पति जंभणियं ॥ १७९ ॥ सेसा न हुंति विगई अजोगवाहीण ते उ कप्पंति । परिभुज्जंति न पायं जं निच्छयओ न नज्जति ॥ १८० ॥ एगेण चैव तवओ पूरेज्जइ पूयएण जो तावो । बीओऽवि स पुण कप्पद अस्ववियनेतरो नवरं ।। १८१ ।। दहिअवयवओ मंथू विगई तक्कं न होइ विगईओ । खीरं तु निरावयवं नवणी ओगाहिमं चैव ॥ १८२ ॥ घरघट्टो पुण विगई वीदणमो य केइ इच्छति । | तेलगुलाणमविगई सोमालियखंडमाईणि ॥ १८३ ॥ एत्थ य घयघट्टो मेहाहुव वीदणमदडघयमज्झे । छूढेहिं तंदुलेहिं जिणलं (जिण्णा लं) होइ न । यच्वं ॥ १८४ ॥ सोमालियं वियाणह सन्निय तह सेल्लियं च जं बिंति । आदिग्गहणेण गहिया सक्करवर सोलगाईवि ।। १८५ || मज्जमहुणो तु खोला मयणा विगइओ पोरगले पिंडो । रसओ पुण तद्वयवो सो पुण नियमा भवे विगई ।। १८६ ॥ मयकच्चसं तु खोला मंसं पुण पुग्गलं मुणेयब्वं । कालेजं पुण पिंडो | सरसो भन्नए रसओ || १८७ ॥ खज्जूरमुद्दियादा डिमाण पीलुच्छुचिंचमाईणं । पिंडरसा न विगईओ नियमा
निर्विकृति
प्रत्या
ख्याने
विकृति
गतानि
॥ १६ ॥