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________________ पशोदेवीये प्रत्याख्यान स्वरूप C२-२५ देशावकाशिकमभिग्रहाश्च ॥१५॥ पाएण होइ एयं रयणीभोयणवयस्स ज तेसिं । आगाराण बहुत्तं इमंच संखित्तआगारं॥१६५।। जइ पुण निसिभत्तवयं दुक्कालभयाइकारणेहि विणा । गिहिणावि हु पडिवन्नं चउविहाहारविसयं च ॥ १६६ ॥ तो तस्सवि देवसियं एवं संभवह तो दिणे सेसे । थोए वा बहुए वा कायव्वं न उण रयणीए ॥ १६७ ॥-भणियं चरममियार्णि आभिग्गहियं भणामि लेसेण । तत्थागारा चउरो अहवावि हवंति पञ्चेव ॥ १६८।। देसावगासिगाइसु दंडगगहणाइगोयरेसुं च । अंगुट्ठमुट्ठिमाइसु नियमेसु हवंति चत्तारि ॥ १६९ ।। अप्पाउरणे पंच उ तं पुण सीयाइसहणबुद्धीए । कोइ पवज्जइ पुरिसो मोत्तुं सव्वंपि पाउरणं ॥ १७ ॥ सो सागरियभएणं चोलगपट्टस्स परिहणनिमित्तं । चोलगपट्टागारं करेइ तेणेह ते पंच ॥ १७१ ॥ सूत्राणि च,-देसावगासियं उवभोगपरिभोगं (द्रव्य सचित्त० ) प० अन्नत्थणाभोगणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह ॥ एवं डंडगगहणअंगुट्टमुटिंगठीघरसउस्सास(जोइथिबुगाइसुवि चत्तारि आगारा दट्टव्वा। अप्पाउरण पच्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं चोलपट्टगागारेणं महत्तरागारेणं सब्बसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह ॥ भणियं आभिग्गहियं निव्वीयं संपयं पवक्खामि । विगईचागाउ इमं ताओच्चिय ताव तो भणिमो। १७१ ।। | खीरं दहि नवणीयं घयं तहा तेल्लमेव गुल मज्जं । महु मंसं चेव तहा ओगाहिमगं च दस विगई ॥ १७३ ।। * ॥१५॥
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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