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________________ श्रीविशेषग वत्यां ॥ १८ ॥ सिद्धाणं ? ॥ २०८ ॥ जुगवाणुवओमित्ते बुच्चर चउणाणिणो विणा हेउं । विगनुपयं जह तह जिणस्स जह होज्ज को दोसो ? | ॥ २०९॥ अहवा खीणावरणे जिणम्मि णिकारणावरणदोसो। ण उ जुज्जइ छउमत्थे संतावरणेत्ति ते बुद्धी || २१० ॥ भण्णइ छउमत्थस्सवि णागयरोवओगभाविते । संतेऽवि खओवसमे सेसावरणं न संभवइ ।। २११ ॥ जेणं जया ग जाणइ णूणमुष्णं तदा तदावरणं । अध संतेण ण जाणइ मिच्छावरणकखओवसमे ।। २१२ ।। एवं जं जं कालं उवउज्जइ जम्मि २ णाणम्मि । तं तं कालं जुत्तो तस्सावरणक्खओवसभी ।। २१३ || ठिइकालविसंवाओ नाणाणं णविअ ते चउण्णाणी । एवं सति छउपत्थो अस्थि ण जइ दंसणी समए ॥ २१४ ॥ पासन्तो गवि जाणइ जाणं व ण पासई जई जिगिंदो । एवं ण कयाइवि सो सव्वष्णू सव्वदरिसी य ॥ २१५ ॥ जुगवमजाणतोऽविहु चउहिवि णाणेहिं जह चउण्णाणी । भण्णइ तहेव अरहा सव्वष्णू सव्वदरिसी य ॥ २१६ ॥ तुल्ले उभयावरणकूखय|म्मि पुब्वयरमुब्भवो कस्स ! | दुविहुवओगाभावे जिणस्स जुगवति चोएइ ॥ २१७ ॥ भण्णइ ण एस नियमो जुगवुप्पण्णेसु जुगमेवेह । होयव्वं उवओगेण एत्थ सुण ताव दितं ॥ २९८ ॥ जह जुगवुप्पत्तीइवि सुत्ते सम्मत्तमइसुयाईणं । णत्थि जुगवोवओगो | सत्रेसु तहेव केवलिणो ॥ २१९ ॥ भणियपि य पनत्तिपण्णवणाईसु जह जिणो समयं । जं जाणइ गवि पासह तं अणुरयणप्पभाग ॥ २२० ॥ इवसहमतुप्पच्चयलोवा तं विंति केइ छउमत्थों । अण्णे पुण परतित्थियवत्तव्यमिपि जंपति ॥ २२१ ॥ जं छउमत्थाsssोहियपरमावहिणो विसेसिडें कर्मओ । णिद्दिसइ केवलित्तेण तस्स छउमत्थया नत्थि ।। २२२ ।। ण य पासह अणुमैण्णो १. ० पाओ, २ पुण. ३ तो, ४० मत्थे ५ बोहि. ६ कमसो, ७ मण्णे ४५ विशेषः केवल ज्ञानदर्शन तदुपयोग विशेषः ॥ १८ ॥ 2
SR No.600390
Book TitlePratya Saraswat Vibhram Dan Shatrinshika Visheshanvati Vinshatika Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Kesarimal Samstha
PublisherRushabhdev Kesarimal Samstha
Publication Year1927
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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