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श्रीविशेषण इयरेयरावरणया अहवा णिकारणावरणं ॥ १९४ ॥ तह य असवणतं असव्वदरिसणत्तगप्पसंगो य। एगंतविआग जिणस्सा वत्यां
विशेष: | दोसा बहविहीया ॥ १९५ ॥ ठिइकालं जह सेसदसणणाणाणमणवओगेवि । दिट्टमवाणं तह ण होइ किं केवलाणपि। १९५ ।।। तुल्लेवि णाणदंसणसम्भावे किह णु जुगवउवओगो । छउमत्थस्साणिद्रो इद्रोवि जिणस्स दुविहोऽवि? ॥१९७॥ सव्वक्खीणावरणी।
अह मण्णइ केवली ण छउमत्थो । तो जुगवमजुगवपि चे उवओगविसेसणं तेसि ॥ १९८ ॥ देसक्खए अजुत्त जुगवं कसिणोभओ| वजोगित्तं । देसोभओवओगो पुण ईय पडिसिज्झए कीस ? ॥ १९९ ॥ अहणेवेस उ घेप्पउ जह छउमत्थस्स तह जिणस्सावि । दोहवि उवओगाणं एगस्स य एगसमयाम्म ॥ २०० ॥ तो भणइ एव.मिच्छा उभयावरणक्खओत्ति केवलिणो। उवउत्तस्सेगयरे जेणगयरस्स आवरणं ॥२०१॥ भण्णइ भिण्णमुहत्तोवओगकालव तो तिणाणस्स । मिच्छा छावट्ठासागरोवमाई खओवसमा || २०२ ॥ अह णवि एवं तो सुण जहेव खीणतराइओ अरहा । संतीय अंतराइयखयम्मि पंचप्पयाम्मि ॥ २०३ ॥ सयय ण दइ
लहइ व मुंजइ उवभुंजई य सबन्नू । कज्जम्मि देइ लहइ अ भुंजइ अ तहेव एयम्मि ॥ २०४ ॥ देंतस्स लभंतस्स व भुंजंत# स्सवि जिणस्स एस गुणो । खाणंतराइयत्ते जं से विग्धो ण संभवइ ॥ २०५ ॥ उवउत्तस्सेमेव य णाणम्मि व दसणम्मि व जिण|स्स । खीणावरणगुणोऽयं जं कसिणं मुणइ पासइ वा ॥२०६ ॥ तो भणइ केवलाणं पत्तो इयरेयरावरणदोसो । भण्णइ चउणा|णिस्सवि स एव दोसो समाविसइ ।। २०७ ।। एवं विणावि णामं कारणमुप्पायविगमया पत्ता । एवं च सइ विण्णाणुब्भवो कह णु ॥१७॥
१ सेसं. २ य. ३ मण्णसि. ४ व. य. ५ पुणाइ प. ६ एययरो, ७.०स य. ८ विग्घे विग्धं.