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________________ अनगार ८४ अध्याय १ जिनके कारण विविध प्रकारकी - गधेपर चढने आदिको विडम्बनाओंसे संक्लिष्टचित्त होकर उन माता पिताओं को दुःखकी ज्वालाएं बढाकर तयार करदेता है, कि जिनके मनमें पहले से ही इस बातकी शंका लगी हुई थी कि यौवन में आकर इसको कहीं, जिनका वारण नहीं किया जा सकता ऐसे, व्यसनोंकी प्राप्ति न हो जाय। इसी तरह उस दुराचर से माता पिता के साथ साथ विपुल तेजके धारण करनेवाले अथवा प्रशस्त स्थानपर पहुंचे हुए पितामहादिकों को भी TET पहुंचाता हुआ, धिकार है कि अंतमें जाकर यह दुर्गति - दारिद्रय अथवा नरक में जाकर डूब जाता है । यौवनमें आकर भी जो मनुष्य निर्विकार रहते हैं उनकी प्रशंसा करते हैं: - धन्यास्ते स्मरवाडवानलशिखादीमः प्रवलगद्बल, क्षाराम्बुर्निरवग्रहेन्द्रियमहाग्राहोभिमानोर्मिकः । यैर्दोषाकरसंप्रयोगनियतस्फीतिः स्वसाञ्चक्रिभि, - स्तीर्णे धर्मशः सुखानि वसुवत्तारुण्यघोरार्णवः ॥ ७० ॥ जो कि जल के समान शरीर सुखा देनेवाले कामदेवरूपी वडवानलकी ज्वालाओं से अत्यंत प्रकाशमान है, जिसमें अहृद्य - अमनोज्ञ होने के कारण क्षार जलके समान बल-वीर्य अत्यंत दर्पके साथ बल्गना कर रहा है- उमड रहा है, महान् बडे भारी ग्रहों-- जलचरोंके समान इंद्रियां जिसमें निरंकुशतासे इधर उधर भ्रमण कर रही हैं, जिसमें अभिमान ऊर्मियों -- लहरोंकी तरह काम कर रहा है; क्योंकि लहरके समान अभिमानका भी उत्थान नियत नहीं है कि कब और कितने प्रमाण में यह उठेगा. एवं जिसकी वृद्धि दोषाकर- दुर्जन अथवा चन्द्रमाकी संगतिको पाकर अवश्य ही हुआ करती है, ऐसा यह यौवन एक प्रकारका बडा भारी भयानक समुद्र है । इसको धनकी तरह धर्म यश और शर्म- सुख अर्थात् इन चारो ही पदार्थोंको आत्माघीन करनेवाले - अविरोधेन सेवन करनेवाले जो जन - युवा पुरुष तरकर पार होगये हैं वे ही धन्य हैं । CREATENIN ८४
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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