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________________ बनगार ७०६ ज्ञानके आठ अंगोंके नाम इस प्रकार हैं:--१ शब्दार्थ की शुद्धता, २ गुरु आदिका नामोल्लेख, ३ कारणरूप तपोविशेषका पालन, ४ परमागम और उसके धारकॉम भक्ति, ५ विधिविहित समय, ६ आदरभाव, ७ चित्तकी एकाग्रता, ८ और मन वचन कायकी शुद्धि । - इन आठ अङ्गोसे परिपूर्ण अध्ययनको ही ज्ञानविनय कहते हैं । ज्ञानविनय और ज्ञानाचारमें क्या अन्तर है, सो बताते हैं:-- यत्नो हि कालशुद्धयादौ स्याज्ज्ञानविनयोत्र तु । सति यत्नस्तदाचारः पराठे तत्साधनेषु च ॥१८॥ उपर्युक्त कालशुद्धि आदिके विषयमें प्रयत्न करनेको ज्ञानविनय और उन शुद्धिआदिकोंके होजानेपर श्रुतका अध्ययन करनेकेलिये प्रयत्न करनेको अथवा अध्ययन की साधनभूत पुस्तकादि सामग्रीकेलिये प्रयत्न करनेको ज्ञानाचार कहते हैं। क्रमानुसार चारित्रविनयका स्वरूप बताते है:रुच्याऽरुच्यहृषीकयोचररतिद्वेषोज्झनेनोच्छलत,क्रोधादिन्छिदयाऽसकृत्समितियोगेन गुप्त्यास्थया । सामान्येतरभावनापरिचयेनापि व्रतान्युद्धरन्, धन्यः साधयते चरित्रविनयं श्रेय:श्रियः पारयम् ॥ ६९॥ अध्याय इन्द्रियों के मनोज्ञ और अमनोज्ञ विषयों में जो क्रमसे रागद्वेष उत्पन्न हुआ करते हैं उनको छोडकर, तथा उठतेहुए क्रोधादिक कषायोंका नाश करके, एवं समीचीन प्रवृत्ति केलिये बार बार प्रयत्न करके, तथा मनवचन कायके निरोधरूप अथवा शुभमनवचनादिरूप गुप्तियोंमें आदरभाव रखकर, और सामान्य तथा विशेष भावनाओंको
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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