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________________ अनगार -७०५ __ सम्यग्दर्शनमें से दोषोंके दूर करने और उसमें गुणों के उत्पन्न करनलिये जो प्रयत्न किया जाता है उसको दर्शनविनय, तथा शंकादिक मलोंके दूर होजानेपर तत्त्वार्थश्रद्धानमें प्रयत्न करने को दर्शनाचार कहते हैं। भावार्थ-सम्यक्त्वके निर्मल और सगुण बनानेको दर्शनविनय तथा उसकी वृद्धि करनेको दर्शनाचार कहते हैं। आठ प्रकारके ज्ञानविनयको पालन करनेका उपदेश देते हैं:शुद्धव्यञ्जनवाच्यतद्वयतया गुर्वादिनामाख्यया, योग्यावग्रहधारणेन समये तद्भाजि भक्त्यापि च ।। यत्काले विहिते कृताञ्जलिपुटस्याव्यग्रबुद्धेः शुचे:, सच्छास्त्राध्ययनं स बोधविनयः साध्योष्टधापीष्टदः ॥ ६७ ॥ शब्द अर्थ और उभय-शब्दार्थ की शुद्धतापूर्वक, और गुरु, चिन्तापक तथा जिस विषयका अध्ययन करना है उसका नामोल्लेख करते हुए, एवं जिस सूत्रका अध्ययन करना है उसके लिये आवश्यक तपोविशेषका अवलम्बन लेकर, अर्थात् जिस तपोनिशेषके धारण करनेपर ही विवक्षित श्रुतज्ञान प्रकट हो सकता है उस तपोविशेषको धारण करके, तथा प्रवचन और उसके धारण तथा निरूपण करनेवाले श्रुतधरोंमें भक्ति रखकर, आगममें अध्ययन करनेका जो समय बताया है उसी विहित समयमें पिच्छी सहित दोनों हाथोंको जोडकर, मनमें किसी भी प्रकारकी व्यग्रता धारण न करके-अर्थात् चित्तको एकाग्र बनाकर, और मन वचन कायको शुद्ध रखकर युक्तिसिद्ध परमागमके न केवल अध्ययन करनेको ही किन्तु गुणन व्याख्यान और शास्त्रदृष्टया आचरणको भी ज्ञानविषय कहते हैं । अत एव इसके आठ भेद-अंग होते हैं । यह ज्ञानविनय अभ्युदयों और निःश्रेयसरूप फलको उत्पन्न कर सकता है अत एव मुमुक्षुओंको इसका साधन अवश्य ही करना चाहिये । ____भावार्थ-साधुओंको अभीष्ट फल देनेवाले इस अष्टाङ्ग सम्यग्ज्ञानका अवश्य पालन करना चाहिये । अध्याय ८९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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