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________________ ही बना है ऐसा, कहना चाहिये । अत एव विना भोजनके यह प्रायः स्थिर नहीं रह सकता। यदि उससे बलात्कार भोजनका परित्याग करादिया जाय तो वह आर्त और दौद्र ध्यान करने में आतुर हो उठता है। और यह स्पष्ट ही है कि इस तरहके दुयानोंसे पीडित व्यक्तिका मन न तो स्वाध्याय आदिके द्वारा ज्ञानका अभ्यास करनेमें और न संयमका आराधन करनेमें ही लग सकता है। इसी वातको फिर भी प्रकारान्तरसे बताते हैं:प्रसिद्धमन्नं वै प्राणा नृणां तत्त्याजितो हठात् । नरो न रमते ज्ञाने दुर्ध्यानातॊ न संयमे ॥ १७ ॥ "अमं वै प्राणाः" यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध है । अन्न नाम आहारका है, वह निश्चय ही मनुष्योंका जीव| न है । क्योंकि उसके विना वह जीवित नहीं रह सकता । प्राणका लक्षण ही यह है कि जिसके रहनेपर जीवित रहे और जिसके वियोग होनेपर मरजाय । अनके विषयमें भी यह बात देखी जाती है । इसलिये उसको भी प्रा. ण कहा जा सकता है । अत एव जिस व्यक्तिसे बलात्कार अन्न छुडवादिया जाता है वह अन्तरंगमें आर्त और रौद्रध्यानसे संक्लिष्ट हो उठता है । फिर वह इन दुानोंसे पीडित होकर ज्ञानाभ्यास या संयमके आराधनमें रत नहीं रह सकता। साधुओंको उचित है कि यदि आयु बहुत अधिक बाकी हो तो उसके बहुतसे हिस्सेको विधिपूर्वक यथाशक्ति नित्यनैमिचिक उपवास करके, किन्तु अन्तके शेष भागको अनशनद्वारा ही बितावे । इसी बातकी शिक्षा देते हैं: तन्नित्यनैमित्तिकभुक्तिमुक्तिविधीन्यथाशक्ति चरन्विलय । - दीर्घ सुधीजीवितवम॑ युक्तस्तच्छेषमत्येत्वशनोज्झयैव ॥ १८॥ आहारके प्रत्याख्यान करनेकी विधि दो प्रकारकी बताई है-एक नित्य, दूसरी नैमित्तिक । केशलेचा बध्याप
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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