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अनार
सकता है । अत एव प्राणसंयम और इन्द्रियसंयम के पालन करनेवाले विरक्त पुरुषोंको शक्ति के अनुसार और वि. धिपूर्वक इसका पालन करना चाहिये ।
उपवासके उत्तमादिक तीनो भेदोंका लक्षण बताते हैं:धारणे पारणे सैकभक्तो वर्यश्चतुर्विधः ।
साम्बुमध्योनेकभक्तः सोधमस्त्रिविधावुभौ ॥ १५ ॥ जिसके धारण और पारणके दिन एक भक्ति तथा उपवासके दिन चारो प्रकारके पदाथोंका दोनो भुक्तिबेलाओंमें परित्याग किया जाय उसके उपवासको उत्तम भेद समझना चाहिये । जिसके धारण और पारण के दिन दोनो भुक्तिवेलाओंमें भी आहारका परित्याग किया जाय किंतु जलके सिवाय शेष आहार्य सामग्रीको ही छोडा जाय उसको मध्यम भेद समझना चाहिये किंतु जिसके धारण और पारण के दिन एक भुक्ति भी न की जाय और उपवामके दिन जल भी ग्रहण करलिया जाय उसको जघन्य भेद समझना चाहिये। इनमेंसे उत्तम भेदका अपर नाम चतुर्विध और शेष मेदोंका नाम त्रिविध है। क्योंकि उत्तम भेदमें चतुर्विध आहारका और मध्यम जघन्य भेदमें त्रिविध आहारका ही परित्याग होता है। जैसा कि कहा भी है कि:
चतुर्णा तत्र भुक्तीनां त्यागे वर्यश्चतुर्विधः ।
उपवासः सपानीयस्त्रिविधो मध्यमो मतः ॥ विना शक्तिके भोजनका परित्याग करने में जो दोष उत्पन्न होते हैं उनको प्रकट करते हैं:
यदाहारमयो जीवस्तदाहारविराधितः ।
नातरौद्रातुगे ज्ञाने रमते न च संयमे ॥ १६॥ यह प्राणी प्रधानतया द्रव्यप्राणोंसे ही जीवित रहता है । अतः इसको आहारमय, मानो भोजनके द्वारा
अध्याय