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________________ अथ सप्तमोध्यायः अनगार सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीन आराधनाओंका वर्णन करके क्रमानुसार सम्यक्तप आराधनाका वर्णन करनेकी इमछासे ग्रन्थकार सबसे पहले इस बातकी शिक्षा देते हैं कि मुक्तिका प्रधान साधन वीतरागता है और रागद्वेषका अभाव तपके द्वारा ही हो सकता है। अत एव मुमुक्षुओंको वीतरागताकी सिद्धिकेलिये नित्य ही तपका संचय करना चाहियेः ज्ञाततत्त्वोपि वैतृष्ण्यादृते नाप्नोति तत्पदम् । ततस्तत्सिद्धये धीरस्तपस्तप्येत नित्यशः ॥१॥ जिसको हेयोपादेयरूप वस्तुस्वरूपका ज्ञान नहीं है उसकी तो बात ही क्या, जो उसका भले प्रकार निश्चय कर चुका है उसको भी अनन्तज्ञानादि चतुष्टयरूप परमपद क्षायिक यथाख्यात चारित्रस्वरूप वीतरागताके विना प्राप्त नहीं हो सकता । अत एव पीतरागता प्राप्त करनेकेलिये पूर्वोक्त परीषह और उपसर्गोंसे विचलित न होनेवाले धीर चीर साधुओंको उस तपका, जिसका कि लक्षण आगे चलकर करेंगे, नित्य ही संचय करना चाहिये । क्योंकि तपके द्वारा ही उसकी सिद्धि हो सकती है। तपका निरुक्तिसिद्ध लक्षण बताते हैं:तपो मनोक्षकायाणां तपनात सन्निरोधनात् । निरुच्यते दृगाद्याविर्भावायेच्छानिरोधनम् ॥ २॥ तप शब्दका अर्थ समीचीनतया निरोध करना होता है । अत एव आत्मामें सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान ६५९ अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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