SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 624
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार सब भी जलकल्लोलके समान क्षणभंगुर ही हैं। जिस प्रकार जलकी कल्लोल अपना चमत्कार दिखाकर क्षणमात्रमें तिरोभूत हो जाती है उसी प्रकार कुटुम्बी जन भी कुछ कालतक ठहरकर विलीन हो जाते है। प्रेमरसको ही सदा प्रगट करनेवाले मित्र प्रभृतिका अनुराग भी सन्ध्याकालके रायके की समान है । जिस प्रकार सन्ध्याके समय कुछ ही क्षणों में आकाशमें कई वाँका विलक्षण २ परिणमन हो होकर सहसा विलीन हो जाता है, उसी प्रकार मित्रजनोंका प्रेम भी कुछ समयतक ही अपना रूप दिखाकर तिरोहित होजाता है। पूज्यता और आज्ञापभृतिका ऐश्वर्य भी विजली के चमत्कारकी तरह क्षणपात्र में ही नष्ट होजानेवाला है। अधिक कहां तक कहें. सेना, हाथी, घोडे, स्थ, पैदल, महल बगीचा आदि जितने भी बाह्य पदार्थ हैं वे सब इस क्षणभंगुरताका ही अनुसरण करते हैं। अतएव हमे इन सम्पूर्ण क्षगविनम्वर पदार्थों का परित्याग करके आत्मा और शरीरके भेदज्ञानरूप ब्रह्मको स्वाभाविक आनन्दसे पूर्ण करना ही उचित है। इस प्रकार अन्तरङ्ग और बाह्य-सम्बद्ध और असम्बद्ध दोनो ही प्रकारके पदामि नश्वरताका विचार करते रहनेसे आसक्ति नहीं होती और उनके भोग कर छोड़ देनेपर-वियोगकाल में फिरसे उनको भोगनेके लिये दुष्परिणाम भी नहीं होते। अशरणताका निरूपण करते हैं:तत्तत्कर्मग्लपितवपुषां लब्धवल्लिप्सितार्थ, मन्वानानां प्रसभमसुवत्प्रोद्यतं भक्तुमाशाम् । यद्वद्वाय त्रिजगति नृणां नैव केनापि दैवं, तद्वन्मृत्युर्घसनरासिकस्तद् वृथा त्राणदैन्यम् ॥ ६० ॥ . मसि कृषि आदि कर्मोंने जिनके शरीरको निःसत्व करडाला है और जो अभीष्ट पदार्थ के विषयमें समझते हैं कि यह तो हमारे हाथमें ही है ऐसे मनुष्योंकी प्राणों के समान आशाका-भविष्य पदार्थों के प्राप्त करनेकी अध्याय ६१२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy