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________________ बनगारं विषयमें उसको नित्यताका ही प्रत्यय हो सकता है । इस प्रकार आयु आदि अन्तरङ्ग पदार्थों की क्षणभंगुरताका विचार करके संपत्ति आदि बाह्य पदार्थोकी भी अनित्यताको प्रकट करते हैं: छाया माध्यान्हिकी श्रीः पथि पथिकजनैः सङ्गमः सङ्गमः स्वैः खार्थाः स्वप्नेक्षितार्थाः पितृसुतदयिता ज्ञातयस्तोयभङ्गाः । सन्ध्यारागोनुरागः प्रणयरससृजां हादिनीदाम वैश्यं, भावा: सैन्यादयोन्येप्यनुविदधति तान्येव तद्ब्रह्म दुह्मः ॥१९॥ এমাৰ लक्ष्मी स्थिर रहनेवाली नहीं है, वह मध्यान्हकालकी छायाके समान क्षणमात्रकेलिये अपना प्रकाश दिखाकर तिरोभूत होजानेवाली है । इसी प्रकार और भी दृष्टांत व दार्थात समझने चाहिये । जैसे बन्धु बान्धवोंके साथ संयोग भी ऐसा ही है जिस तरहसे कि मार्गमें पथिकोंके साथ कुछ क्षणके लिये संयोग हो जाया करता है। जिस प्रकार मित्र मिन्न दिशाओंसे आकर पथिकजन विश्राम के लिये एक वृक्षकी छाया में कुछ क्षण के लिये एकत्रित हो जाते हैं किंतु थोड़ी ही देर बाद वे अपने अपने स्थानको चले जाते हैं-वियुक्त होजाते हैं । उसी प्रकार भिन्न भिन्न गतिघाँसे आये हुए जीव अपने अपने कर्मके अनुसार आयुका उपभोग करनके लिये एक ही कुल या ज्ञातिमें कुछ क्षण के लिये इकडे हो जाते हैं और उसके बाद अपने अपने कर्म के अनुसार भिन्न भिन्न गतियों में चले जाते हैं । अतएव बन्धुवान्धवोंका संयोग मार्गमें होनेवाले पथिकसंयोगके समान क्षणभंगुर है । इन्द्रियों के विषय भी स्वप्नमें देखे हुए पदार्थोके समान अकिंचित्कर ही हैं। क्योंकि जिस प्रकार स्वप्नमें देखे हुए पदार्थ उस समय देखने मात्रके ही हैं, निद्रा खुलते ही सब विलीन होजानेवाले हैं। उनसे कोई भी वास्तविक कार्य सिद्ध नहीं हो सकता । उसी प्रकार इन्द्रियों के विषय मी उपभोगके समय में ही मनोहर मालुम पड़नेवाले हैं। उसके बाद उनसे कोई भी प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता । माता पिता लड़का लड़की और स्त्री आदि जितने कुटुम्बी जन हैं वे
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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