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________________ अनगार आकांक्षाका बलात्कार उपमर्दन करदेने के लिय उद्युक्त हुए दैव-पूर्वकृत अशुभ कर्मको दूर करनेके लिये क्या तीनों लोकमें भी कोई समर्थ है ? नहीं! इस त्रिलोकीमें चेतन या अचेतन ऐसी कोई भी शक्ति नहीं है जो कि पूर्वसंचित कर्मका निवारण कर सके। मनुष्य भविष्य के लिये अनेक प्रकारकी आशाएं बांधता है किंतु पूर्वकर्म उदयमें आकर हठात् उसमें विघ्न डाल देता है । जिस प्रकार कोई भी इन्द्रादिक या मन्त्रादिक कर्मकी शक्तिसे नहीं रोक सकते उसी प्रकार आयु भी अनिवार्य ही है । संसारी जीवमात्र के प्राणोका संहार करनेमें उद्युक्त हुए मृत्युका भी कोई निवारण नहीं कर सकता। जब कि यह बात है-देव और मृत्यु दोनोंका ही निराकरण नहीं हो सकता तब रक्षण या शरणके लिय किसीका भी अनुसरण करना या किसीक सामने दीनता प्रकाशित करना व्यर्थ ही है। क्योंकि न तो कोई मेरे भाग्य में परिवर्तन कर सकता है और न मेरी मृत्युको ही रोक सकता है । ये दोनो कार्य अवश्यम्भावी हैं अतएव इनके लिये धैर्यका अवलम्बन लेना ही सत्पुरुषोंको उचित है। चक्री अर्धचक्री इन्द्र या योगीन्द्र कोई भी क्यों न हो, कालका प्रतीकार नहीं कर सकता; इस बातका निरंतर चिन्तवन करते रहनेवाला मुक्षु किसी भी बाह्य वस्तुमें मोहित नहीं हो सकता । इस बातको प्रकट करते हैं: सम्राजां पश्यतामप्यभिनयति न कि स्वं यमश्चण्डिमानं, शक्राः सीदन्ति दीर्धे क न दयितवधूदीर्घनिद्रामनस्ये । आ कालव्यालदंष्ट्रां प्रकट तरतपोविक्रमा योगिनोपि व्याकोष्टुं न क्रमन्ते तदिह बहिरहो यत् किमप्यस्तु किं मे ॥ ६१ ॥ यह यमराज बलत्कार प्राणोंका हरण करलेनेवाली अपनी क्रूरताका अभिनय भला कहां कहांपर नहीं दिखाता है, सम्पूर्ण पृथ्वीका उपयोग करनेवाले चक्रवर्ती बैठे ही रहते हैं और उनके सामने यह क्रूर काल उनके १-कर्माण्युदीर्यमाणानि स्वकीये समय सति । प्रतिषद्धं न शक्यन्ते नक्षत्राणीव केनचित् ।। अध्याय ६१३
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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