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________________ धनगार वर्तमान तथा प्रतिनियत रूपादि विषयोंको ही ग्रहण करनेवाली इन रंक इन्द्रियों पे क्या तेरी वह आशा जो कि सम्पूर्ण जगतको कवलित करलेनेवाली है, पूर्ण हो सकती है ? नहीं, कमी नहीं । अत एव अपने अपने पिता परमब्रह्मके विश्वमात्रके ऐश्वर्यका भोक्ता समस्त वस्तुविस्तारका अधिपति रहते हुए तुझको यौवराज्य-शुद्ध निजात्माके अनुभवकी योग्यतारूप कुमारपदका ही सेवन करना चाहिये। एकत्ववितर्क अवीचारनामक शुक्लध्यानमें स्थिर होना चाहिये। इन्द्रियों के विषय, जिस समयमें उनको भोगा जाता है, उसी एक क्षणमें रमणीय मालुम होते हैं किन्तु अनन्तर समयमें ही उनका अत्यंत कटु अनुभव होने लगता है, इस बातको बताते हुए और साथ ही इस बातक भी ज्ञान कराते हुए कि वे आविर्भूत होकर अनन्तर समयमें ही तृष्णामें पुनः नवीनताको उद्धृत कर स्वयं तिरोभृत होजाते हैं । अत एव तृष्णासंतापको उत्पन्न करनेवाले और क्षणभंगुर हैं। फिर भी जो अज्ञानी लोक इन विषयोंके ही लिये अपने सम्मुख विपत्तियोंको बुलाते हैं उनकी कृतिपर अपशोच प्रकट करते हैं: सुधागवं खर्वन्त्याभिमुखहृषीकप्रणयिनः, क्षणं ये तेप्यूवं विषमपवदन्त्यङ्ग विषयाः । त एवाविर्भूय प्रतिचितघनायाः खलु तिरो, भवन्यन्धास्तेभ्योप्यहह किमु कर्षन्ति विपदः ॥ ४३ ॥ अपने अपने विषयोंको ग्रहण करनेके लिये उत्सुक हुई इन्द्रियों के साथ यथायोग्य - अपने अपने अनुरूप परिचय रखनेवाले जो विषय अमृतके भी गर्वका खण्डन करदेते हैं-फलतः जो सेवन करते समय अमृतसे भी अधिक रमणीय मालूम पडते हैं ऐसे अत्यंत उत्तम गिने जानेवाले पुष्पमाला स्त्री चन्दन प्रभृति विषय भी अन्त में सेवनक्षणके बाद ही मोह मूर्छा और संतापादिको उत्पन्न कर जहर ही उगलते हैं। इसके सिवाय ये आविर्भूत होकर -उपभोग्यताको धारण करके क्षणभरके बाद ही भोगोपभोगकी गृद्धिको बढाकर तिरोभूत-विलीन होजाते अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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