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________________ बनगार रीरिक सामर्थ्य और वीर्यशब्दका अर्थ स्वाभाविक शक्ति होता है। एषणा समितिके द्वारा शुद्ध भोजनको सर्वाशन, और गुड तैल तथा घी द्ध दही आदिसे रहित किन्तु छाछ आदिसे युक्त निर्विकृत भोजनको विद्धाशन, तथा पककर जैसा तयार हुआ हो वैसेके वैसे ही-जिसमें किसी भी प्रकारसे-व्यञ्जनादिकके द्वारा अन्यापन नहीं लाया गया है ऐसे भोजनको शुद्धाशन कहते हैं। इस श्लोकमें च शब्दके द्वारा जो विशेष बात बताई है वह यह है कि सर्वाशनादिकसे विपरीत-असर्वाशन अविद्वाशन और अशुद्धाशन कदाचित् योग्य किंतु कदाचित् अयोग्य दोनों ही प्रकारका हो सकता है । अत एव उनका भले प्रकार पर्यालोचन करके ही ग्रहण करना चाहिये । जो भोजन विधिपूर्वक किया जाता है उससे ख और पर दोनोंका उपकार होता है, इस बातको प्रकट करते हैं:-. यत्प्रत्तं गृहिणात्मने कृतमपेतैकाक्षजीवं त्रसै,निर्जीवैरपि वर्जितं तदशनाद्यात्मार्थसिद्धयै यतिः । युञ्जन्नुद्धरति स्वमेव न परं किं तर्हि सम्यग्दृशं, दातारं द्यशिवश्रिया च सचते भोगैश्च मिथ्यादृशम् ॥ ६६ ॥ अध्याय जिस भक्तपान औषध आदिको गृहस्थने स्वयं अपने ही लिये बनाया हो और जो कि मृत अथवा जीवित द्वीन्द्रियादिक जीवोंसे तथा एकेन्द्रिय प्राणियोंसे सर्वथा रहित है ऐसे उस भक्त पानादिको नवधा भक्ति के द्वारा गृहस्थके द्वारा दिये जानेपर आत्मकल्याणको सिद्ध करनेके अभिप्राय से विधिपूर्वक ग्रहण करनेवाला यति संयमी केवल अपना ही नहीं किन्तु उस दाताका भी उपकार किया करता है। क्योंकि यदि वह दाता सम्यग्दृष्टि हो तब तो उसको स्वर्ग मोक्षरूपी लक्ष्मीसे युक्त बनादेता है और यदि मिथ्यादृष्टि हो तो उसे अभीष्ट विषयोंकी प्राप्ति करादेता है।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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