SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार पृथ्वीके जिस भागमें जल वृक्ष और पर्वत अल्प प्रमाणमें पाये जाते हैं उसको जागल कहते हैं । इसमें रोगोंकी उत्पत्ति प्रायः कम हुआ करती है । इससे ठीक विपरीत प्रदेशको अर्थात जिसमें जल वृक्ष और पर्वत अधिक प्रमाणमें पाये जाय उसको अनूप कहते हैं। और जहांपर ये जलादिक वस्तुएं समरूपमें पाई जाती हैं कम या अधिक नहीं पाई जाती उस प्रदेशको साधारण कहते हैं । जाङ्गल देशमें वातकी और अनूपदशमें कफकी प्रधानता रहा करती है, किन्तु साधारणप्रदेशमें वात पित्त और कफ तीनोंही समानरूपमें रहा करते हैं। हेमन्त शिशिर वसन्त ग्रीष्म वर्षा और शरद् इन छह ऋतुओंको काल समझना चाहिये । इनके भेदसे भी चर्या में भेद हुआ करता है। यथा-- शरद्वसन्तयो-रुक्षं शीतं धर्मघनान्तयोः । अन्नपान समासेन विपरीतमतोन्यदा ।। शरद् और वसन्त ऋतुमें रूक्ष तथा ग्रीष्म और वर्षा ऋतुमें शीत अन्नपान ग्रहण करना चाहिये । और | भिन्न समयमें इससे विपरीत भोजन पान करना चाहिये । यथाः-- शीते वर्षाप्त चाद्यांखीन्वसन्तेऽन्यान् रसान्भजेत् । स्वादुं निदाघे शरदि स्वादुतिक्तकषायकान् ।। रसाः स्वादुम्ललवणतिक्तोषणकषायकाः । षड्द्रव्यमाश्रितास्ते च यथापूर्व बलावहाः ।। पृथिवी जल अग्नि वायु और वनस्पति आदिके सम्बन्धमे रहनेवाले रस छह प्रकारके माने हैं-मधुर अम्ल लवण तिक्त उषण और कषाय । इनको उत्तरोत्तर कम कम बलवर्धक माना है । फलतः मधुर रस सबसे अधिक और कषाय सबसे कम बलवर्धक माना है । इनमे आदिके तीन रसोंको शीत और वर्षामें तथा अन्तके तीन रसोंको वसन्तमें तथा ग्रीष्म ऋतुमें मधुर रस और शरद ऋतुमें मधुर तिक्त और कषाय रसका सेवन करना चाहिये। भावशब्दका अर्थ श्रद्धा उत्साह आदि तथा बलशब्दका अर्थ अन्नपानादिके निमित्तसे उत्पन्न हुई शा. अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy