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________________ अनगार भोजन छोडनेके निमित्तोंको दिखाते हैं:आतङ्क उपसर्गे ब्रह्मचर्यस्य गुप्तये । कायकायंतपःप्राणिदयाद्यर्थं च नाहरेत् ॥ ६४ ॥ किसी भी आकस्मिक व्याधि-मारणान्तिक पीडाके उठ खडे होनेपर, देवादिकके द्वारा किये गये उत्पातादिकके उपस्थित होपेपर, अथवा ब्रह्मचर्यको निर्मल बनाये रखनेकेलिये यद्वा शरीरकी कृषता तपश्चरण और प्राणिरक्षा आदि धर्मोंकी सिद्धि के लिये भी साधुओंको भोजनका परित्याग करदेना चाहिये । साधुओंको स्वास्थ्यकी स्थिरताकालये सर्वैषणादिकोंके द्वारा भोजन करनेका उपदेश देते हैं:-- द्रव्यं क्षेत्रं बलं कालं भावं वीर्य समीक्ष्य च। स्वास्थ्याय वर्ततां सर्वविशुद्धाशनैः सुधीः ॥ ६५ ॥ विचारपूर्वक आचरण करनेवाले साधुओंको आरोग्य और आत्मस्वरूपमें अवस्थान रखनेके लिये द्रव्य क्षेत्र काल भाव बल और वीर्य इन छह बातोका अच्छी तरह पर्यालोचन करके सर्वाशन विद्धाशन और शुद्धाशन के द्वारा आहारमें प्रवृत्ति करना चाहिये। आहारादिक सामग्रीको द्रव्य, और पृथ्वीके जाङ्गलादिक प्रदेशको क्षेत्र कहते हैं । यह क्षेत्र तीन प्रकारका माना है-जाङ्गल अनूप और साधारण, जिनका कि लक्षण इस प्रकार है देशोल्पवारिद्रनगो जाङ्गल: स्वल्परोगदः । अनूपो विपरीतोऽस्मात्समः साधारणः स्मृतः ।। जाङ्गलं वातभूयिष्ठमनूपं तु कफोल्बणम् । साधारणं सममलं त्रिधा भूदेशमादिशेत् ।। अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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