SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार १९७ बध्याय देते हैं: वेयणवज्जावचे किरियुठ्ठाणे य संजमठ्ठाए । तपाणधम्मचिंता कुज्जा एदेहिं आहारं ॥ जो मनुष्य बुश्चक्षासे पीडित है उसके दया क्षमा आदिक कोई भी गुण स्थिर नहीं रह सकते ऐसा उपदेश बुभुक्षाग्लपिताक्षाणां प्राणिरक्षा कुतस्तनी । क्षमादयः क्षुधार्तानां शंक्याश्चापि तपस्विनाम् ॥ ६२ ॥ जिन मनुष्योंकी इंद्रियोंको क्षुधावाधाने सर्वथा अशक्त बना डाला है उनके भीतर प्राणिरक्षा - दया कहांसे आसकती है. इसी प्रकार चिरकालसे तपस्या करनेवाले भी किन्तु बुभुक्षापीडित साधुके क्षमादिक गुणके स्थिर रहनेमें संदेह ही समझना चाहिये । योगियोंमें भी जो क्षुधासे अशक्त है उसके लिये वैयावृत्त्यका करना कठिन होजाता है। इसी प्रकारें उनके प्राणोंका सुरक्षित रहना भी आहारपर ही अवलम्बित है । अत एव उनको आहारमें प्रवृत्ति करनेका उपदेश देते हैं: क्षुत्पीतवीर्येण परः स्ववदार्ते दुरुद्धरः । प्राणाश्चाहारशरणा योगकाष्ठाजुषामपि ॥ ६३ ॥ क्षुधा द्वारा नष्ट हो गई है शक्ति जिसकी ऐसा मनुष्य जब कि स्वयं ही दुःखी अथवा पीडित हो रहा है तब क्या उसके लिये दूसरे दुःखपीडित लोगों का उद्धार करना अशक्य नहीं है-अवश्य है। इसी प्रकार जो आरब्धयोगी हैं अथवा जिन्होंने अभी योगका आरम्भ भी नहीं किया है उनकी तो बात ही क्या, जो घटमानयोगी हैं और जिन्होंने यम नियम आसन प्रणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि इस अष्टाङ्ग योगका अभ्यास किया है उनके भी प्राणों को निःसन्देह आहार ही शरण है । $ ५५७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy