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________________ मलिनीगर्भिणीलिङ्गिन्यादिनार्या नरेण च । शवादिनापि कीबेन दत्तं दायकदोषभाक् ॥ ३४॥ धर्म रजस्खला गर्भभारसे युक्त अथवा जिनालङ्ग आदिके धारण करनवाली आर्यिकाओं तथा दूसरी भी रक्तपटिका आदि अनेक प्रकारकी स्त्रियोंके द्वारा ही नहीं किन्तु शबको श्मशानमें छोडकर आये हुए मृतक सूतकसे युक्त यद्वा व्याधियुक्त तथा क्लीब-नपुंसक आदि पुरुषोंके द्वारा भी दिये हुए आहारको दायक दोषसे युक्त समझना चाहिये। यहांपर स्त्री पुरुष वेदोंके साथ जो आदि शब्द दिया है उससे और भी आगममें बताये हुए भेदोंका ग्रहण करलेना चाहिये । यथाः-- सूती शौण्डी तथा रोगी शवः षण्ढः पिशाचवान् । पतितोच्चारनमाश्च रक्ता वेश्या च लिङ्गिनी : बान्ताऽभ्यतालिका चातिवाला वृद्धा च गर्भिणी। अदंयन्धा निषण्णा च नीचोच्चस्था च सान्तरा ॥ फूत्कारं ज्वालनं चैव सारणं छादनं तथा। विध्यापनाग्निकार्ये च कृत्वा निश्च्यावघट्टने ॥ लेपनं मार्जनं त्यक्त्वा स्तनलग्न शिशुं तथा । दीयमानेपि दानेस्ति दोषो दायकगोचरः । सूती - जननहारी -जिसके सन्तान उत्पन्न हुई हो, जो मद्यपान करनेमें लम्पट हो, जो वातादिककी बाधासे पीडित अथवा भूतपिशाच आदिके द्वारा मूञ्छित हो, जो रक्ता-मासिक धर्मसे युक्त हो, जो पंचश्रमणिका रक्तपटिका आर्यिका आदिका लिङ्ग धारण करनेवाली हो, जिसने वान्ति की हो, अथवा शरीरमें अभ्यङ्ग लगा रक्खा हो यद्वा पात्रके स्थानसे नीचे या ऊंचे प्रदेशपर खडी हो, जो मीत वगैरहके आडमें आगई हो, जो अध्याय ५४९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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