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________________ अनगार अग्निको फूंककर जलाकर बढाकर भस्मादिके द्वारा दवाकर जलादिकके द्वारा बुझाकर या इधर उधर बखेरकर अथवा उसमेंसे लकडी वगैरह कम करके यद्वा किसीसे उसको घिट्ट करके, इसी प्रकार घर आंगन दीवाल आदिके मट्टी गोवर आदिपे लीपनेको या स्नानादिको अथवा दूध पीते हुए बच्चेको छोडकर दान करनेमें प्रवृत्त हुई हो यद्वा जो विलकुल बालिका है या गर्मिणी अथवा अन्धी है, इसी प्रकार जो पुरुष रोगी है अथवा मृतको स्मशानमें छोडकर आया है यद्वा नपुंसक या पतित है अथवा मलमूत्रादिका परित्याग करके आया है, जिसने एक ही वस्त्रको धारण कर रक्खा है या जो नग्न है जो पिशाचादिसे आक्रान्त है, उसके द्वारा आहारके देनेमें दायक दोष बतलाया है। यहांपर कुछ विशेषण ऐसे दिये हैं जो कि स्त्रीके होकर मी पुरुषमें भी घटित हो सकते हैं, जैसे कि मद्यपान करनेवाली आदि । इसी प्रकार कुछ विशेषण ऐसे भी दिये हैं जो कि हैं तो पुरुषके किन्तु वे स्त्रीमें भी घटित हो सकते हैं। जैसे कि रोगी आदि । क्योंकि पुरुष भी मद्यप हुआ करते हैं और स्त्रियां भी रोगिणी हुआ करती हैं । अत एव सम्पूर्ण विशेषणोंको यथासम्भव घटित करलेना चाहिये । लिप्त दोषका स्वरूप बताते हैं:यद्वैरिकादिनाऽऽमेन शाकेन सलिलेन वा । भद्रेण पाणिना देयं तल्लिप्तं भाजनेन वा ॥ ३५॥ गेरू हडताल खडिया मेनशिल आदि पदार्थोके द्वारा अथवा गेहूं चावल आदिके कच्चे आटेसे, यद्वा हरित शाक और अग्रासुक जलसे लिप्त हुए अथवा भीगे हुए हाथ यद्वा पात्र अथवा दोनों ही के द्वारा भोजनके देनेमें लिप्त नामका अशनदोष माना है। जैसा कि कहा भी है कि: गेल्यहरिदालेण व सेढियमण्णो सिलामपितॄण । सपवालयगुल्लेणव देयं करभाजणे लित्तं ॥ मिश्रदोषका स्वरूप बताते हैं:-- . अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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