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________________ यहांपर गौ शब्द उपलक्षण है अत एव इससे गाय बैल भेस घोडा बकरी आदि.सभी चेतन द्रव्य समझने चाहिये । पारिशेष्यात् अर्थ शब्दसे मोना चांदी रुपया पैसा आदि अचेतन पदार्थ समझना चाहिये । विद्याके प्रज्ञप्ति आदि अनेक भेद है। यहांपर आदिशब्दसे नेटक मंत्र आदिको समझना चाहिये। ये चीजें अपनी हों या दूसरेकी अथवा दोनोंकी-साजे की, किन्तु उनके द्वारा यदि भिक्षार्थ साधुके आनेपर कोई भोज्य सामग्री लाई जाय तो उसको क्रीत दोषसे दषित समझना चाहिये । यथाः क्रीतं तु द्विविध द्रव्यं भावः स्वकपरं द्विधा । सचित्तादिभवो द्रव्यं भावो विद्यादिकं तथा ।। प्रामित्य और परिवर्तितका स्वरूप बताते हैं:--- उद्धारानीतमन्नादि प्रामित्यं वृद्ध्यवृद्धिमत् । बीह्यन्नाद्यन शाल्यन्नाद्युपात्त परिवर्तितम् ॥ १४ ॥ मुनियोंके दानकेलिये किसी भी उधार लाये हुए अन्न आदिको प्रामित्य कहते हैं। उधार लानेमें और उसके चुकानेमें दाताको अनक क्लेश उठाने पड़ते हैं परिश्रा करना पडता और कदर्थित होना पडता है। अत एव माधुकरी वृत्ति धारण करनेवाले माधुओं के लिये यह दोष माना है। यह दो प्रकारका माना है एक वृद्धिमत् दूसरा अवृद्धिमत् । क्योंकि कोई भी चीज जो उधार लाई जाती है वह दो प्रकारकी हो सकती है एक व्याजू दूसरी विना व्याजू । यथा: भक्कादिकमृणं यच तत्वामित्यमुदाहृतम् । तत्पुनर्द्वि विधं प्रोक्तं सवृद्धिकमथेतरत् ॥ एक चीजके बदलेमें यदि दूसरी चीज लाई जाय जैसे कि साठीके बदरेमें शालीके चावल अथवा उ.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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