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________________ अनगार ५३. यक्ष नाग माता कुलदेवी और पित्रादिकेलिए बनाये हुएमेंसे अवशिष्ट आहार यदि संयमियों को दिया जाय तो उसको बलि दोषसे दूषित समझना चाहिये । यद्वा यतियोंके निमित्तसे सावद्य पूजनका आरम्भ करना भी बलिदोष माना जाता है । जिस वर्तनमें भोजन पकाया या बनाया गया हो उसमेंसे निकालकर कटोरी कटोरा आदि किसी दूसरे वर्तनमें रखकर यदि उसको किसी दूसरे स्थानमें- अपने ही घरमें अथवा परघरमें रखदिया जाय तो उसको न्यस्त कहते हैं। इसको इसलिये दूषित कहा है कि यदि रखनेवालेकी अपेक्षा कोई भन्न मनुष्य उसको दे तो वह उसमें गडबड कर सकता है। प्रादुष्कार और क्रीतका स्वरूप बताते हैं:पात्रादेः संक्रमः साधौ कटाद्याविष्क्रियाऽऽगते । प्रादुष्कार: स्वान्यगोर्थविद्याद्यैः क्रीतमाहृतम् ॥ १३ ॥ प्रादुष्कारके दो भेद है-एक संक्रम दुसरा प्रकाश । साधुके घर आनेपर भोजनके भाजन आदिको का एक जगहसे दूसरी जगह लेजाना संक्रम दोष है । और किबाड मंडप आदिका दूर करना, भस्मादिकसे अथवा जलादिकसे वर्तनादिकोंका माजना यद्वा दीपकका जलाना आदि प्रकाश दोष है । जैसा कि कहा भी है किः संक्रमश्च प्रकाशश्व प्रादुष्कारो द्विधा मतः । एकोत्र भाजनादीनां कटादिविषयोऽपरः ॥ अध्याय अपने अथवा पराये यद्वा दोनोंके यथासम्भव गौ अर्थ विद्यादिकोंके बदलेमें जो भोज्यद्रव्य लाया जाय उसको क्रीत कहते हैं। अर्थात् भिक्षार्थ साधुके घरमें प्रविष्ट होजानेपर उनके लिये उक्त गौ आदिको देकर जो भोज्य सामग्री लाई जाय उसको क्रीत दोषसे दूषित समझना चाहिये ।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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