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________________ अनगार १२९ अध्याय ५ 專職專專專號鮮易籃籃 15 ERELESSESSESSEEEEE जिस वस्तुको आगममें शुक्ल पक्षको अष्टमीको देने योग्य बताया है उसको उस दिन न देकर उस से पहले ही शुक्ला पंचको ही यदि दाता दे अथवा जो चैत्र शुक्ल पक्षमें देने योग्य निर्धारित है उसको उससे पहले कृष्ण पक्षमें ही यदि दिया जाय, तथा इसी तरह और भी जो कालहानिकी अपेक्षासे होने वाले दोष हैं उन सबको स्थूल प्राभृत कहते हैं। इसी तरह शुक्ल पंचमी के दिन देने योग्य वस्तुको उसके बाद शुक्ल अष्टमी के दिन देना अथवा चैव कृष्ण पक्ष में देने योग्य हो चैत्र शुक्ल में देना तथा और भी जो इसी तरह का वृद्धि की अपेक्षा होने वाले दोष हैं उन सबको भी स्थूल प्राभृत ही कहते हैं। मध्यान्ह में देने योग्यको पूर्वान्ह में . देना और अपराण्में देने योग्यको मध्यान्ह में देना, हत्या दे कालहानिकी अपेक्षा से होनेवाले दोषों को सूक्ष्म प्राभृत कहते हैं। इसी प्रकार पूर्वाह में देने योग्य वस्तुको जो मध्यान्हादिकमें देना वह सब भी कालवृद्धिकी अपेक्षासे होनेवाला सूक्ष्म प्राभृत कहा जाता है। कहा भी है कि--- द्वेधा प्राभृतकं स्थूलं सूक्ष्मं तदुभयं द्विधा । अवसस्तथोत्सर्पः कालहान्यतिरेकतः ॥ परिवृत्त्या दिनादीनां द्विविधं बादरं मतम् । दिनस्याद्यन्तमध्यानां द्वेधा सूक्ष्मं विपर्ययात् ॥ प्राभृत दोष के दो भेद हैं-- एक स्थूल दूपरा सूक्ष्म । इनमें भी प्रत्येक काडानि और कालवृ-* द्धिकी अपेक्षा क्रमसे दो दो भेद होते हैं - एक अवसर्प दूसरा उत्सर्प दिन पक्ष मासादिकमें हानिवृद्धि होनेसे स्थूल प्राभृतके दो भेद, और दिनके ही आदि मध्य अन्तमें हानि वृद्धि होनेसे सूक्ष्म प्राभृतके दो भेद होते हैं। चल और न्यस्तका लक्षण बताते हैं:-- यक्षादिबलिशेषोर्चासावद्यं वा यतौ बलिः । न्यस्तं क्षिप्त्वा पाकपात्रात्पात्यादौ स्थापितं कचित् ॥ १२ अ. ध. ૭ 鹽湖劵菜豬豬豬飛豬豬豬雞雞 धर्म० ५२९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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