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________________ बनगार ११२ बध्याय ४ KEEP Sanam सोश्वासवदं किरियं वहिदो होदि सो समणो ॥ वदसमिदिदियरोधो लोचावम्सगमचेलमण्हाण | खिसियणमदतवणं ठिदिभोयणमेयभत्त च ॥ एदे खलु मूलगुणा मणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता । तेसु पमत्ता समणो छेदोवठ्ठाव गो होदि ॥ केश और स्मशुओं का उत्पादन करदेनेपर तथा यथाजातरूपके धारण करनेपर जो शुद्ध स्वरूप उत्पन्न होता है जो कि हिंसादिक तथा प्रतिक्रमणादिकसे भी रहित है, मूर्छा और आरम्भसे रहित किंतु उपयोग, योग और शुद्धियोंसे युक्त है, जो मरेकी अपेक्षा नहीं रखता और अपुनर्भव- मोक्षका कारण है उसको जैन लिङ्ग कहते हैं । परमगुरुके उपदेशानुसार उनको नमस्कार करके जो मुमुक्षु इस लिङ्गको धारण करके और व्रतों तथा क्रियाओं का स्वरूप सुनकर उनमें उपस्थित होता है उसको भ्रमण कहते हैं। पांच व्रत और शेष उनकी परिकररूप तेईस क्रियाएं हैं जिनके कि नाम इस प्रकार हैं- पांच व्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रियनिरोध, छह आवश्यक, और एक लोच, एक आचलक्य एक अस्नान, एक पृथ्वीपर सोना, एक अदंतधावन, एक स्थित भोजन, तथा एक एकमुक्ति । इस प्रकार जिनेन्द्रदेवने श्रमणों के अठ्ठाईस मूलगुण बातये हैं। इनमें जो प्रमत्त रहता है वह श्रमण छेदोपस्थापन संयमका धारक समझा जाता है, अथवा होता है । छेदोपस्थान इस शब्द में छेद शब्दका अर्थ लोप भी होता है । अत एव साम विकके किसी विकल्पका धारण कर लेनेपर भी कारणवश उनका छेद भंग - लोप होजानेपर पुनः उसके धारण करने को उसमें उपस्थित होनेको छेदोपस्थापन संयम कहते हैं। जैसा कि कहा भी है कि- व्रतानां छेदनं कृत्वा यदात्मन्यधिरोपणम् । शोधन वा विलोपे तरछेदापस्थापन मतम् ॥ अंश-विभाग करके जो अपनी आत्मामें व्रतोंका आरोपण करना, अथवा धारण करलेने के वाद लोप होनेपर उनका शोधन करना, इसको छेदोपस्थापन संयम कहते हैं । " 添添添添蘺GS CASA A A A GLASS ५१२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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