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________________ बनमार धर्म शरीरमें ममत्वबुद्धिके परित्यागरूप कायोत्सर्गको, अथवा हिंसा मैथुन और चोरी इन पापोंसे दूर रहने को, यद्वा समस्त शारीरिक चेष्टाओंकी निवृत्तिको कायगुप्ति कहते हैं । जैसा कि कहा भी है कि:-- - · स्थिरीकृतशरीरस्य पर्यकं संश्रितस्य वा । परीषहप्रपातेपि कायगुप्तिर्मता मुनेः ॥ अत्यंत परीषहोंके आ उपस्थित होनेपर भी जो अपने शरीरको स्थिर बनाये रखता है अथवा पर्यकासनमें निश्चल रहता है-जो कायोत्सर्ग अथवा पर्यङ्कासनसे विचलित नहीं होता उस साधुके कायगुप्ति कही जाती है। और भी कहा है कि: कायक्रियानिवृत्तिः कायोत्सर्गः शरीरके गुप्तिः। . हिंसादिनिवृत्तिर्वा शरीरगुप्तिः समुरिष्टा ॥ शारीरिक क्रियाओंके परित्याग अथवा कायोत्सर्गको कायगुप्ति कहते हैं। यद्वा हिंसादिक पापोंकी निवृत्तिको मी कायगुप्ति कहते हैं। वस्तुतः त्रिगुप्तियुक्तका स्वरूप बताकर उसीके उत्कृष्टतया संवर और निर्जरा हो सकती है ऐसा उपदेश देते हैं: लुप्तयोगस्त्रिगुप्तोऽर्थात्तस्यैवापूर्वमण्वपि । कर्मास्त्रवति नोपात्तं निष्फलं गलति स्वयम् ॥ १५७ ॥ जिसका मानसिक वाचिक और कायिक तीनो ही प्रकारका व्यापार लुप्त हो चुका है-जो तीनो ही प्रकारके योगोंसे सर्वथा रहित हो चुका है वही आत्मा वस्तुतः गुप्तित्रयरूप परिणत समझना चाहिये। ऐसे अध्याय ४८५
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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