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________________ अनगार ३३७ बध्याय ४ इन नौ भेदोंका विवरण करते हैं- त्वामहं याचयिष्यामि ज्ञापयिष्यामि किंचन । प्रष्टुमिच्छामि किंचित्त्वमानेष्यामि च किंचन । बालः किमेष वतीति व्रत संदेग्धि मे मनः । व्याम्येहि भो भिक्षो करोम्याज्ञां तव प्रभो ॥ किंचित्वां त्याजयिष्यामि हुं करोत्यत्र मौः कुतः | याचन्यादिषु दृष्टान्ता इत्थमेते प्रदर्शिताः ॥ १ मैं तुमसे याचना करवाऊंगा, ३ मैं कुछ पूछना चाहता हूं, ४ मैं कुछ लाऊंगा, ५ यह बालक क्या कह रहा है ? बताओ तो मेरा मन संदेहमें पडगया है, ६ हे साधो ! मैं तुमको बुला रहा हूं, यहां आओ, ७ जो आपकी आज्ञा होगी वही करूंगा, ८ मैं तुमसे कुछ छुडवा दूंगा, ९ यहांपर गौ हुं हुं क्यों कर रही है। ये क्रमसे याचनी आदि भाषाके उदाहरण । इसी तरह और भी समझलेने चाहिये । अ. घ. ४२ इस प्रकार सत्यका स्वरूप और भेद प्रभेद समझकर साधुओंको सत्य महाव्रतका पालन करना चाहिये । मैं कुछ अयोग्य वचन नहीं बोलता; एतावता मेरे सत्यव्रतका पालन होगया; ऐसा मुमुक्षुओं को समझकर संतोष धारण न करलेना चाहिये । उन्हें असत्य वचनों का सुनना भी छोडना चाहिये; क्योंकि उनको सुनकर अशुभ परिणामोंका होना संभव है और उनसे फिर महान् कर्मबन्ध हो सकता है । अतएव साधुओंको यत्नके साथ उन वचनों का सुनना छोडदेना चाहिये कि जिनसे अशुभ परिणामोंका होना संभव हो । जैसा कि आगममें भी कहा है कि: 1 तव्विवरीदं सथं कज्जे काले मिदं सविसए य । भत्तादिकारहिदं भणाहि तं चेन य सुणाहि ॥ Ramaya धर्म - ३३७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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