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________________ बनगार ३३६ यदि शक्तिसे काम ले तो वह अपनी मुष्टिसे सुमेरुका भी चूर्ण कर सकता है, ९ चन्द्रमाके सदृश रूप न रहते हुए भी किसी कामिनीको चन्द्रमुखी कहना, १० देखे हुए भी चोरको विना देखा हुआ कहना। ऊपरके श्लोकमें उपमासत्यके उदाहरणका उल्लेख करते हुए पल्य शब्दके साथ जो चशब्दका प्रयोग किया है सो वह अनुक्तविषयक भी समुच्चय दिखानेकेलिये है । अत एव उसमें यह अर्थ भी संगृहीत होजाता है । नौ प्रकारके असत्यमृषारूप अनुभय वचनको भी यदि साधु आगमसे अविरुद्ध बोले तो उससे उसके सत्यव्रतकी हानि नहीं होती । क्योंकि ऐसे इन वचनोंसे सत्यका अतिवर्तन नहीं होता । यथाः सत्यमसत्यालीकव्यलीकदोषादिवय॑मनवद्यम । सूत्रानुसारि वदतो भाषासमितिभवेच्छुद्धा ।। असत्य अलीक व्यलीक आदि दोषोंसे रहित अनवद्य और सूत्रके अविरुद्ध बोलनेवाले साधुकी भाषासमिति शुद्ध समझी जाती है । ऊपर जिनका उल्लेख किया है उन नौ प्रकारके अनुभय वचनोंको गिनाते और स्पष्ट करते हैं: याचनी ज्ञापनी पृच्छानयनी संशयिन्यपि । आह्वानीच्छानुकूला वाक् प्रत्याख्यान्यप्यनक्षरा ।। असत्यमोषभाषेति नवधा बोधिता जिनैः । व्यक्ताव्यक्तमतिज्ञानं वक्तुः श्रोतुश्च यद्भवेत् ।। १ याचनी २ ज्ञापनी ३ पृच्छा ४ आनयनी ५ संशयिनी ६ आह्वानी ७ इच्छानुकूला ८ प्रत्याख्यानी ९ और अनक्षरा । इस प्रकार असत्यमृषाभाषाके जिनेन्द्रदेवने ९ भेद गिनाये हैं। इन ९ प्रकारक वचनोंको असत्यमृषा इसलिये कहते हैं कि इनके वक्ता और श्रोता दोनोंको इनके वाच्यविषयका जो मतिज्ञान होता है वह कुछ व्यक्त और कुछ अव्यक्त होता है। बध्याय ३३६
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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