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________________ बनगार ३३५ अध्याय AAAAAAALDA의 전기 रूप सत्य कहते हैं । जैसे कि चन्द्रमामें काले दागके रहते हुए भी उसकी अपेक्षा न करके उसको सफेद कहना । जिसमें लोकोंका किसी प्रकार विवाद न हो, सभी उसको सत्य समझें ऐसे वचनको संमति सत्य कहते हैं । जैसे कि कीच आदि कारणोंसे उत्पन्न होनेपर भी कमलको अम्बुज - अम्बु - जलसे उत्पन्न होनेवाला कहना | आगम में भी इसी प्रकार सत्य दश भेद गिनाये हैं । यथा: देशेष्टस्थापनानामरूपापेक्षाजनोक्तिषु । संभावनोपमाभावेष्विति सत्यं दशात्मना ॥ ओदनोप्युच्यते चोरो राज्ञी देवीति संमता । दृषदप्युच्यते देवो दुर्विधोपीश्वराभिधः ॥ दृष्टाधरादिरागपि कृष्णकेश्यपि भारती । प्राचुर्याच्छ्रतरूपस्य सर्वशुक्लेति सा स्तुता ॥ स्वापेक्षो भवेद्दीर्घः पच्यन्ते किल मण्डकाः । अपि मुष्टया पिनष्टन्द्रो गिरीन्द्रमपि शक्तितः ।। अतद्रूपापि चन्द्रास्या कामिन्युपमयोच्यते । चौरे दृष्टेप्यदृष्टोक्तिरित्यादि वदतां नृणाम् ॥ स्यान्मण्डलाद्यपेक्षायां सत्यं दशविधं वचः । सत्य दश प्रकारका है- १ जनपद, २ संमति, ३ स्थापना, ४ नाम, ५ रूप, ६ अपेक्षा, ७ व्यवहार, ८ संभावना, ९ उपमा, १० भाव । इनके उदाहरण क्रमसे इस प्रकार हैं। -> भातको चोर कहना, २ रानीको देवी कहना, ३ पत्थरको देव कहना, ४ भाग्यहीन अथवा कुरूपको भी ईश्वर कहना, ५ यद्यपि भारतीके अधर रक्त और केश काले होते हैं फिर मी श्वेत रूप प्रचुरतासे पाया जाता है, इसलिये उसको सर्वशुक्ला कहना, ६ किसी वस्तुको उससे भी छोटी वस्तुकी अपेक्षा दीर्घ कहना, ७ बनी हुई रोटीके विषय में यह कहना कि रोटी पक रही है. ८ इन्द्र धर्म • ३३५
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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