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________________ बनगार ३०८ कर्मका बंध नहीं होता। यदि वह गुप्तियोंमें परिणत हो जाय-मानसिक वाचिक और कायिक क्रियाओंका निरोध ही कर दे तब तो विशेष रूपसे बंध नहीं हो सकता । भावार्थ-समिति प्रवृत्तिरूप हैं । अत एव वहांपर योग और कुछ कषायांश दोनो ही पाये जाते हैं । - इसीलिये वहां कुछ शुभ काँका बंध भी होता है। किंतु गुप्ति योगके निग्रहरूप है। अत एव उसके होनेपर विशेपतया बंध नहीं हो सकता-पूर्ण योगनिरोध होजानेपर तो बिल्कुल ही बंध नहीं होता। अत एव समितिपरिणतकी अपेक्षा गुप्तिपरिणतके विशेषतया बंधका निषेध किया है। रागादि कषायोंका उत्पन्न होना ही हिंसा है और उनका उत्पन्न न होना अहिंसा है; जिनागमके इस परमोत्कृष्ट रहस्यका निश्चय कराते हैं: परं जिनागमस्येदं रहस्यमवधार्यताम् । हिंसा रागाद्युत्पत्तिरहिंसा तदनुद्भवः ॥ २६ ॥ हृदयमें इस बातको अच्छी तरह से धारण करला-निश्चित समझो कि सर्वज्ञ भगवान्के उपदिष्ट समस्त आगमका यही परमोत्कृष्ट रहस्य- अन्तस्तच है कि रागद्वेष और मोहरूप परिणामोंका प्रादुर्भूत होना ही हिंसा और इन कषायभावोंका उत्पन्न न होना ही अहिंसा है। हिंसाके कारण एकसौ आठ हैं। उनका त्याग करनेपर ही अहिंसक हो सकता है; ऐसी शिक्षा देते हैं: कषायोद्रेकतो योगैः कृतकारितसम्मतान् । स्यात्संरम्भसमारम्भारम्भानुज्झन्नहिमकः॥ २७॥ अध्याय ३०८
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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