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________________ बनगार न कर्मबहुलं जगन्न चलनात्मकं कर्म वा । न चैककरणानि वा न चिडचिद्वधो बन्धकृत् ।। यदक्यमुपयोगभूः समुपयाति रागादिमिः । स एव किल केवलं भवति बन्धहेतुनृणाम् ।। __ वंधका कारण न तो जगत ही है, जिसमें कि अनेक प्रकारके काम हुआ करते हैं। और न यह चंचल काम ही है । एवं न तो अनेक करण-इन्द्रियां ही बंधका कारण हैं और न चेतन तथा अचेतन जीवोंका वध ही उसका कारण है। उसका कारण निश्चयसे केवल वह उपयोगस्वरूप आत्मा ही है जो कि रागादिकके साथ एकता प्राप्त करलेता है। क्योंकि विशुद्ध परिणामोंके धारक जीवके उसके शरीरका निमित्त पाकर होजानेवाला परप्राणियोंके प्राणोंका व्यपरोपण ही यदि बंधका कारण हो जाय तब तो फिर कोई मुक्त ही नहीं हो सकता । क्योंकि योगियोंके भी बायुकायिकादि जीवोंका वध होता है। उस निमित्तके रहते हुए वे मुक्त किस तरह हो सकते हैं । यगः जइ सुद्धस्स य बधो होदि हि बहिरंगवत्थुजोएण । णत्थि दु अहिंसगो णाम वाउकायादिवधहेदृ ॥ यदि केवल बहिरंग बस्तुके सम्बन्धसे शुद्ध जीवके भी वंध होने लगे तब तो कोई अहिंसक ही नहीं रह सकता । क्योंकि वायुकायिकादि जीव वधके कारण सर्वत्र मौजूद हैं । इसी अर्थको ग्रंथकार स्पष्ट करते हैं: तत्त्वज्ञानबलाद्रागद्वेषमोहानपोहतः। समितस्य न बन्धः स्याद् गुप्तस्य तु विशेषतः॥ २५ ॥ उपर्युक्त तत्वज्ञानके बलसे रागद्वेष और मोहरूपी वैभाविक परिणामोंका परित्याग करदेनेवाले जीवके, वह समितियोंमें प्रवृत्ति करे-अपना प्रत्येक गमनागमनादिक कार्य यत्न अथवा सावधानतापूर्वक करे तो, बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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