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________________ इन्ही [ सर्व संसारी] जीवोंके चौदह जीवसमास भी गिनाये हैं। यथाः बनगार ३०४ समणा अमणा या पंचेंदिय णिम्मणा परे सव्वे । बादरसुहुमे इदी सव्वे पजत्त इदरा य ।। पंचेन्द्रियोंके दो भेद-समनस्क और अमनस्क और सभी अमनस्क-चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय और द्वीन्द्रिय एवं एकेन्द्रियके दो भेद बादर और सूक्ष्म । ये सातो ही प्रकारके जीव पर्याप्त भी होते हैं और अपर्याप्त भी। अत एव जीवसमासके भेद चौदह हैं। गुणस्थान और मार्गणाओंकी अपेक्षासे भी जीवोंके चौदह चौदह भेद होते हैं । चौदह गुणस्थानोंके नामः मिथ्याक सासनो मिश्रोऽसंयतोऽणुव्रतस्ततः । सप्रमादेतराऽपूर्वानिवृत्तिकरणास्तथा । सूक्ष्मलोभोपशान्ताख्यौ निमोहो योग्ययोगिनी । मिथ्यादर्शन सासन मिश्र असंयत अणुव्रत प्रमत्त अप्रमत्त अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मलोभ उपशांतमोह क्षीणमोह सयोगी अयोगी। ये संसारी जीवोंके चौदह भेद हैं । जो मुक्त जीव हैं वे इन गुणस्थानोंसे रहित हैं। चौदह मार्गणाओंके नामः गतयः करणं कायो योगो वेदः कुधादयः । वेदनं संयमो दृष्टिलेश्या भव्यः सुदशनम् ॥ सजी चाहारकः प्रोक्तास्ताश्चतुर्दश मागणाः । मिथ्यागादयो जीवा मार्गणासु सदादिभिः ॥ अध्याय ३०४
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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