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________________ अनगार उक्त पृथिवी कायिकादिक पाचों ही स्थावर बादर हैं, पांचों ही सूक्ष्मकाय भी होते हैं। जिनके कि अंगुलासंख्यातवें भाग शरीग्नाम कर्मका उदय रहता है । जिनकी संधि सिरा और पर्व गूढ अदृश्यमान रहता है, जो त्वचारहित और तन्तुवर्जित है, एवं छिन्न होनेपर भी जो उलह आती है उसको सप्रतिष्ठित प्रत्यक और बाकी बल्ली वृक्ष तृण आदिको अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं। प्रत्येक शरीर और साधारण शरीरवाले जीवोंकी यतियोंको रक्षा करनी चाहिये। क्योंकि ये सब हरित कायके जीव हैं । ये जीव हैं यह बात आगम और युक्ति दोनोंसे सिद्ध है। क्योंकि संपूर्ण त्वचाके उपाट लेनेपर उनका मरण हो जाता है और उनमें आहारादि संज्ञाओंका अस्तित्व भी पाया जाता है । जलसे वनस्पतियां हरी रहती हैं। इममे उनमें आहार संज्ञाका, छूनेसे संकुचित होती हैं। इससे उनमें भयसंज्ञाका, कामिनियोंके कुरला आदिमे हर्ष विकासादिक होता है। इससे उनमें मैथुनसं ज्ञाका, और जिधर धन होता है उसी दिशामें जड अधिक जाती है। इससे उनमें परिग्रहसंज्ञाका सद्भाव सिद्ध होता है। ___ ऊपर निगोद जीवोंका उल्लेख किया है । अत एव उसका स्वरूप भी यहां बता देना उचित है । वह आगममें इस प्रकार बताया है: साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणियं ॥ . जत्येक्कु मरवि जीवो तत्य दु मरणं हवे अणंताणं । चंकमइ जत्थ इको चकमणं तत्थऽणताणं ॥ एकणिगोदसरीरे जीवा दव्वप्पमाणदो दिठ्ठा । सिद्धहिं अणंवगुणा सम्वेण वि तीदकालेण ॥ अध्याय SENS २९९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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