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________________ बनगार ३ साधारण-निगोद जीवोंका लक्षण साधारण ही है। क्योंकि एक जगहपर जितने अनंतानंत निगोद जीव रहते हैं उन सबका समान आहार और समान ही श्वासोच्छ्वासका ग्रहण होता है। उनमें से यदि एक मरता है तो वे अनन्तानन्त भी मरजाते हैं । और एक यदि उत्पन्न होता है तो अनन्तानन्त उत्पन्न होते हैं। एक निगोदियाके शरीरमें द्रव्यप्रमाणकी दृष्टिसे सिद्धोंसे और समस्त भूतकालसे अनंतगुणे जीव रहते हैं । निगोद जीव दो प्रकारके होते हैं -नित्यनिगोद आर अनित्यनिगोद । यथा: त्रसत्वं ये प्रपद्यन्ते कालानां त्रितयेपि नो । ज्ञया नित्यनिगोतास्ते भूरिपोपवशीकृताः ॥ कालत्रयेपि ये वस्त्रसता प्रतिपद्यते । सन्त्यनित्यनिगोतास्ते चतुर्गतिविहारिणः । अत्यंत पापके वश हुए जिन जीवोंने तीन काल में भी त्रस पर्याय नहीं प्राप्त की उनको नित्यनिगोद कहते हैं। और जिन्होंने तीन कालमें कभी भी त्रस पर्याय प्राप्त कर ली है उनको अनित्यनिगोद कहते हैं। . पृथिवी आदिक जो पांच स्थावरोंके भेद गिनाये हैं उनमें प्रत्येकके चार चार भेद हैं-सामान्य, काय, कायिक और जीव । जैसे कि पृथिवी, पृथिवी काय, पृथिवी कायिक, पृथिवी जीव । इनका लक्षण आगममें इस प्रकार बताया है: अध्याय १- गोमट्टसार जीवकाण्डमें नित्यनिगोदका स्वरूप इस प्रकार कहा है अत्थि अणंता जीवा जेहिं ण पत्तो तसाण परिणामो, भावकलंकसुपउरा णिगोदवासं ण मुंचंति ॥ जिन्होंने अबतक व्यवहार राशि प्राप्त नहीं की है उनको नित्यनिगोद कहते हैं ।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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