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________________ भनगार २९८ | उक्त वनस्पति अनेक प्रकारकी होती हैं-कोई तो मूलसे ही उत्पन्न होती हैं। जैसे हल्दी अदरक इत्यादि । कोई अग्रसे उत्पन्न होती हैं, जैसे गुलाब वेला चमली इत्यादि । कोई पर्वसे उत्पन्न होती हैं; जैसे ईख वेंत आदि । कोई कन्दसे उत्पन्न होती हैं। जैसे सकल कन्दी पिण्डालू इत्यादि । कोई स्कन्धसे उत्पन्न होती हैं। जैसे पलाश आदिक । और कोई बीजसे उत्पन्न होती हैं जैसे जौ गेहूं मूग मोठ आदि । ये मूलादिकसे उत्पन्न होनेवाली सभी वनस्पती सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित दोनो तरहकी होती हैं। इसके सिवाय सम्मर्छन वनस्पती भी होती हैं जो कि मूलादिक बीजके बिना ही अपनी उत्पत्तिके योग्य पुद्गलोंके मिलजानेपर उत्पन्न होजाया करती हैं। जैसे घास आदि । क्योंक देखा जाता है कि कितने ही जीव विना बीजके भी उत्पन्न होजाया करते हैं; जसे कि शृङ्गसे सार और गोवरसे विच्छू । उसी प्रकार सम्मूर्छन वनस्पति भी हैं । इससे वनस्पति दो प्रकारकी समझनी चाहिये एक बीजोद्भव दूसरी सम्मृर्छन । त्वचा मूल कन्द पत्र प्रबाल प्रसव फल स्कन्ध गुच्छा गुल्म तृण वल्ली पर्व शैवल पणक किण्व कव- ' क और कुहण । ये सब बादर वनस्पतियोंके भेद हैं । इनके सिवाय सूक्ष्म वनस्पति भी हैं जो कि स्थल और आकाश सर्वत्र व्याप्त हैं। - - वृक्षकी छालको त्वचा, जडको मूल और गड्डाको कन्द कहते हैं । पत्ते प्रसिद्ध हैं । जिसपर केवल पत्ते ही आते हैं, फल फूल नहीं आते उसको पत्र, जिसपर बिना फूलके ही फल आजाते हैं उसको फल, जिसपर केवल फूल ही आते हैं फल नहीं आते उसको पुष्प वनस्पति कहते हैं । स्कन्धसे पर्वपर्यन्त शब्दोंका अर्थ स्पष्ट है। जलमें जो हरी हरी काई होती है उसको शवल, गीली ईट जमीन और दीवालपर जो काई लग जाती है उसको पणक, वर्षाकालमें उत्पन्न होनेवाली छत्राकारादि वनस्पतियोंको किण्व, जटाकार वनस्पतिविशेषको कवक, और आहार कांजी आदिपर जो फफरूंदा आजाता है उसको कुहण कहते हैं। - अध्याय १- मूलमें पत्र शब्दसे वृक्षका अवयव पत्ता और प्रवाल शब्दसे पत्र जातिकी वनस्पतिके बतानेका प्रयोजन है। 19 २९८
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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