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________________ धनगार ८४ राहुस्स अरिदृस्स य किंचूर्ण जोयणं अधोगता । छम्मासे पव्वंते चंदरविं छादयन्ति कमा ॥ चंद्रमा और सूर्यके कुछ कम एक योजन नीचे राहु और अरिष्टका विमान है जो कि क्रमसे छह महीने बाद पर्वके अंतमें चंद्रमा और सूर्यका आच्छादन करते हैं। और भी कहा है कि: राहुअरिट्टविमाणद्धयादुवरि पमाणअंगुलचउक्कं । गंतूण ससिविमाणा सूरविमाणा कमे होति ।। राहु और अरिष्टके विमानस्थानसे चार प्रमाणांगुल ऊपर क्रमसे चंद्रमाका विमान और सूर्यका विमान है । इस आगमकथनसे सिद्ध है कि अरिष्टका दोष तटस्थ राहुको लगता है । इसी प्रकार निर्दय पुरुष चाहे वह तटस्थ-निकटवर्ती अथवा उदासीन ही क्यों न हो, उसको दूसरेका भी दोप लगजाता है। जिस जीवका एक बार कोई अपकार करे तो वह अपने उस अपकर्ताका अनेक वार अपकार करता है यह बात दृष्टान्तद्वारा स्पष्ट करते हैं: विराधकं हन्त्यसकृद्विराद्धः सकृदप्यलम् । क्रोधसंस्कारत: पार्श्वकमठोदाहतिः स्फुटम् ॥१३॥ एक वार भी यदि किसी जीवका अपकार किया जाय तो अनंतानुबंधी क्रोधके संस्कार-वासनाके वश | होकर वह जीव अपने उस अपकर्ताका अनेक वार अपकार करता है । इसकेलिये उदाहरण ढूंढनेकी आवश्यकता नहीं, पार्श्व और कमठका उदाहरण स्पष्ट है। अध्याय १--" नामी चोर मारा जाय"।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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