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________________ अनगार १३ अध्याय वन अनेक दुःखोंका निमित्त होता है उसी तरह इसमें भी जीव विविध प्रकारके दुःखोंका भोग करते हुए ही रहरहे हैं । यद्यपि ये सांसारिक दुःख जिनको कि यह संसारी जीव निरंतर भोगता रहता है, अनेक प्रकारके हैं फिर भी वे चार भागों में विभक्त हैं- सहज, शारीर, मानस और आगन्तुक | सरदी गरमी धूप वर्षा आदि ऋतुओं के निमित्तसे अथवा भूख प्यास आदि से होनेवाले परितापको साहजिक, शरीर में होनेवाली बीमारी आदिके निमित्तसे उत्पन्न हुए क्लेशको शारीरिक, चिंता शोक संज्ञा रति आदिके द्वारा हुए संतापको मानासिक, और किसी मनुष्य देव या तिर्थचादिके निमित्तसे आ उपस्थित होनेवाली बाधाओंको आगन्तुक दुःख कहते हैं। जब कि संसार एक प्रthreat वन है तो उसमें होनेवाले ये दुःख दावानल हैं। क्योंकि जिस प्रकार दावानलसे वहां पर रहनेवालोंको विनाशांत विविध प्रकारकी शारीरिक और मानसिक आपत्तियां प्राप्त होती हैं उसी प्रकार इन दुःखोंसे भी अपनेसे सम्बद्ध अथवा संसारमें रहनेवाले प्राणियोंको जबतक उनसे सम्बन्ध न छूट जाय तबतक अथवा मरण पर्यंत अनेक प्रकार की आपत्तियां प्राप्त होती हैं । सारांश यह कि प्राणियोंको आपत्ति पहुंचानेमें निमित्त होना ही इस दुःखरूप दावानल के स्कन्धका कार्य है और इसीलिये यह उत्पन्न होता है । इस प्रकारका यह दुःखरूप दावानलका स्कन्ध जिसमें निरंकुशतया वार वार और खूब जोरसे धधक रहा है ऐसे उक्त संसाररूपी वनमें ये प्राणी इस प्रकार से इतस्ततः भ्रमण कर रहे हैं कि उससे छुटकारेकी या कल्याणकी इच्छा रखते हुए भी उल्टे उन्हीकी तरफ जा उपस्थित होते हैं । इसका कारण यह है कि वे मोक्षके मार्गसे अनभिज्ञ हैं । संसारका अभाव होजानेपर जfवको जो निज स्वरूपका लाभ होता है उसको मोक्ष कहते हैं। इसकी प्राति उपायका नाममार्ग है । व्यवहारनयसे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको तथा निश्चयनयसे इस रत्नत्रयस्वरूप निजात्माको ही मोक्षमार्ग कहते हैं । इसके स्वरूपका इन संसारी जीवोंको संशयादि - रहित पूर्ण रूपसे अथवा व्यवहार या निश्चय नयके द्वारा ज्ञान नहीं है; इसीलिये उन दुःखोंसे व्याप्त संसारवनसे वे मुक्ति प्राप्त नहीं करसकते । अर्थात् मुक्तिके समीचीन उपायसे मूढ रहनेके कारण ही ये प्राणी उक्त 1 १ वहां पर रहनेवाले या दवानल दोनोंमेंसे किसी एकका जबतक विनाश न हो जाय तत्रतक धर्म १३:
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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