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________________ न्धि कहते है। आदिशदत पैदना आमभव जातिस्मरण जिनालादर्शन प्रभृति आगममें अनेक ताये बदनार .. । इस धर्मश्रुतिखाविस्मृतिमुराहजिनमहिमवशनं महताम् । बाय प्रथमशोङ्ग विना सुरक्षियानबादिमुवाम् ॥ मेवेकिणां पूर्वे है सजिनार्वेक्षणे नरतिरश्राम् । सहगमिभवे त्रिषु प्राक् श्वश्रेष्वन्येषु स द्वितीयोसौ ॥ भायोपशमिकी लन्धि शाँदी देश निकी भवी । प्रायोगिकी समासाद्य कुरुते करणत्रयम् ।। इस प्रकार धर्मश्रवण और जातिस्मरण आदि गतिभेदकी अपेक्षासे प्रथमोपशम सम्यक्त्वके भिन्न मित्र बाह्य कारण बताये हैं। किंतु अंतरंगकी क्षायोपशामकी आदि ५ लब्धियां सामान्य कारण हैं । इनमें भी आदिकी चार सामान्य और अंतकी करणलब्धि विशेष कारण हैं। क्योंकि आदिकी चार लाब्धयोंके होजानेपर भी करणलब्धिके विना सम्यक्त्व उत्पन्न नहीं हो सकता । जैसा कि कहा भी है: खयउवस मिय विसोही देसण पाउग्ग करण लधीए । चत्तारिवि सामण्णा करणं पुण होदि सम्मत्ते ॥ ... पूर्वसंचित कर्मपटलके अनुभागस्पर्धकोंकी, परिणामोंकी विशुद्धिके संबंधसे प्रतिसमय अनंत अनन्तगुणी हीन उदीरणा होने को क्षायोपशमिकी लब्धि कहते हैं । क्षयोपशमसे युक्त उदीरणाको प्राप्त अनुभागस्पर्धकोंसे होनेवाले उन परिणामोंको शौद्धी लब्धि कहते हैं जो कि सावध असातावेदनीय प्रभृति कर्मबंधके विरुद्ध और सातावेदनीय आदि कर्मबंधको निमित्त हैं । स्थार्थ तवके उपदेश या उस उपदेशके देनेवाले आचार्यादिकी प्राप्तिको अथवा उपदिष्ट अर्थके ग्रहण धारण और विचार करने की शक्तिको देशनिकी लब्धि कहते हैं । SINESSISTRNANTARSA-Aachar PATPATREATEMENTS बध्याय १७३
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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