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________________ अनगार १७२ उपशम और उन कोंके सर्वथा नष्ट होनेको क्षय कहते हैं। सर्ववाति सर्यों में से सदयस्थावालोंका उपशम और उदयमें आनेवालोंकी विना फल दिये निर्जरा, तथा देशघाति स्पर्धकोंका उदय होनेपर कर्मकी जो अवस्था होती है उसको क्षयोपशम कहते हैं । इनमेंसे किसी भी एक अंतरङ्ग कारणके तथा उक्त कारणोंके मिलनेपर जो सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है वह उक्त निसर्ग और अधिगमकी अपेक्षासे यद्यपि दो प्रकारका है फिर भी सामान्यसे सभी सम्यग्दर्शन तत्वश्रद्धानरूप होते हैं, न कि रुचिरूप । क्योंकि क्षीणमोह जीवोंके रुचि नहीं हो सकती । विना रुचिके सम्यक्त्वकी और उसके विना ज्ञानचारित्रकी तथा इनके विना मुक्तिकी सिद्धि नहीं हो सकती । रुचिको जो सम्यग्दर्शन पहले कहा है वह उपचारसे कहा है । इस सम्यग्दर्शनके माहात्म्यसे तीनो अज्ञानों -कुमति कुश्रुत और विभंगमें विपरीतता दूर होकर शुद्धि - समीचीनता उत्पन्न हो जाती है। काललाब्ध आदिक जो कारण बताये जाते हैं वे अनेक हैं । कर्माविष्ट भव्य अर्धपुद्गलपारिवर्तनप्रमाण काल शेष रहनेपर प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेके योग्य होता है न कि अधिक काल शेष रहनेपर । इसीको काल रसे कहा था इनके विना जीवोंके साचन १- कर्मस्पर्धकोंका अपहनन-घात करदेनेवालों ने स्पर्धकका लक्षण इस प्रकार कहा है कि कर्मपरमाणुके शक्तिसमूहको वर्ग, वर्गरूप अणुओंके समूहको वर्गगा, और वर्गगाओंके समूहको स्पर्धक कहते हैं । यथाः " वर्गः शक्तिसमूहोऽणोरणूनां वर्गणोदिता। वर्गणानां समूहस्तु स्पर्धकं स्पर्धकापहैः ।" २-सम्यक्त्वोत्पत्तिके कारण आगममें भी अनेक प्रकारके बताये हैं । यया : "चदुगदि भव्बो सगी पजत्तो सुद्धगो य सागारो । जागाये सजेस्स्ये सलाखो सम्पमुक्यमह ॥"
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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