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________________ अनगार १५६ अध्याय R चार विकथा ( स्त्री कथा भक्तकथा राष्ट्रकथा राजकथा), गर प्रकारका कपाय ( क्रोध मान माया लोभ, ) पांच इन्द्रिय, [ स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु और श्रोत्र ], एक निद्रा और एक प्रणय – स्नेहं । आत्मा क्रोधादिरूप विकृत भावोंकी कषाय कहते हैं। इसके ५२ भेद है। क्रोध मान माया लोभ इन चार कषायों में से प्रत्येकके चार चार भेद हैं अनन्तानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन | इसके सिवाय हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा स्त्री पुरुष नपुंसक नव भेद ये। कुल मिलाकर कषायके २५ भेद हैं । दकको नोकपाय कहते हैं, न कि कपाय । फिर भी नोकपाय शब्दका अर्थ ईपत् कषाय होता है; और थोडेसे की विवक्षा नहीं भी की जा सकती है । अत एव कषायशब्द से ही यहां सबका उल्लेख किया है । और आगममें भी कषाय २५ गिनाये हैं. इसलिये यहां किसी तरह की शंकाका स्थान नहीं रह सकता । योग - मन वचन और कायके द्वारा जो आत्मप्रदेशों में परिस्पन्दरूप व्यापार होता है उसको योग कहते हैं। अत एव आलम्बनकी अपेक्षासे इसके तीन भेद हैं; मनोयोग वचनयोग, काययोग | इस प्रकार ये भावावके भेद हैं। इन्हीके उत्तर भेद मोक्षशास्त्रादिक में " तत्प्रदोषनिह्नवमात्सर्यान्तराया " आदि सूत्रों के द्वारा बताये गये हैं । ये मिथ्यादर्शनादिक और उनके तत्प्रदोषादिक उत्तर भेद समस्त और व्यस्त दोनो ही तरहसे बंधके कारण हुआ करते हैं। तथा जहां जो निमित्त हो वहां उस निमित्तके अनुसार स्थिति और अनुभागकी अपेक्षासे ज्ञानावरणादि कर्मोंका, जैसा कि सूत्रमें बताया गया है, बंध होता है और प्रकृति प्रदेशकी अपेक्षा से सभी कर्मो का बंध हुआ करता है । पहले और तीसरे गुणस्थानमें ये पांचो ही भेद पाये जाते हैं । सासादन और असंयतसम्यग्दृष्टि में मिथ्यात्वको छोड़कर बाकी चार, संयतासंयत और प्रमत्तसंयत में मिथ्यात्व तथा अविरतिके सिवाय तीन, अप्रम १- प्रमादके विशेष भेद और भङ्गपद्धति आदि गोम्महसार की टीकामें देखने चाहिये । Maa Kaa धर्म १५६
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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