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जा चुका है। वहींपर उसके भेद भी गिनादिये गये हैं। अत एव यहां फिर उसके दुहरानेकी आवश्यकता न
असंयम--प्राणघात-हिंसा आदि भावोंको असंयम कहते हैं । इसके बारह भेद हैं। जिसमेंसे ६ प्राणासंयम और ६ इंद्रियासंयमके हैं। पांच स्थावर (पृथिवी जल अग्नि वायु वनस्पति) और त्रस इन छह कायके जीवोंकी हिंसादि करना प्राणासंयम है। पांच इंद्रिय और एक मन इन छहोंको अपने अपने विषयसे न रोकना इन्द्रियासंयम है। इस प्रकार असंयमके कुल बारह भेद होते हैं ।
प्रमाद-किसी भी काममें सावधानता न रखनेको प्रमाद कहते हैं। यहां अनगार धर्मका प्रकरण है, अत एव आठ प्रकारकी शुद्धि, दश प्रकारका धम, तथा और भी धर्माचरणोंमें मन्दता करनेको- उसके सेवन करनेमें उत्साह न रखनेको प्रमाद समझना चाहिये । जसा कि आगममें भी बताया है
संज्वलननोकषायाणां यः स्यात्तीब्रोदयो यतेः ।
प्रमादः सोस्त्यनुत्साहो धर्ये शुद्धथष्टके तथा । यतियोंके संज्वलन और नोकषायका उदय जो तीव्र होता है उससे आठ प्रकारकी शुद्धि और धार्मिक आचरणमें उत्साह नहीं होता; इसीको प्रमाद कहते हैं । यह प्रमाद पंद्रह प्रकारका है । यथा--
विकहा तहा कसाया इदिय णिद्दा य तह य पणओ य । - चदु चदु पण एगेगं होंति पमादा हु पण्णरसा ॥..
अध्याय
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१-भिक्षा ईर्या शयनासन विनय व्युत्सर्ग वचन मन और शरीर । २-उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव आदि ।