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________________ अनगार और शुद्ध । मिथ्यादृष्टि सासादन और मिश्र इन तीन गुणस्थानोंमें अशुभोपयाग होता है। किंतु वह क्रमसे मन्द मन्दतर और मन्दतम होता है । इसके बाद असंयत देशर्मयत और प्रमत्त इन गुणस्थानोंमें शुभोपयोग होता | है। किंतु वह क्रमसे शुभ शुभतर और शुभतम होता है। तथा परम्परासे शुद्धोपयोगका साधक होता है। इसके अनन्तर अप्रमत्त- सातवें गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थानतक शुद्धोपयोग होता है। यह शुद्धनयरूप है। और इसमें यह विशेषता है कि इन गुणस्थानोंकी किसी भी विवक्षित एक देशमें जघन्य मध्यम उत्कृष्ट तीन भेदोमेंसे किसी भी रूपमें यह हो सकता है। इनमेंसे मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें संवर नहीं होता । सासादनादिक गुणस्थानों में क्रमसे नीचे लिखे अनुसार संवर हुआ करता है । बन्धव्युच्छित्तिके विषयमें जो त्रिभंगी बताई गई है उसके क्रमके अनुसार उत्तरोत्तर गुणस्थानोंमें यह संवर प्रकर्षतया हुआ करता है। किस किस गुणस्थानमें किन किन प्रकृतियोंका संवर होता है सो इस प्रकार है प्रथम गुणस्थानमें मिथ्यात्व परिणामोंसे जिन प्रकृतियोंका बंध होता है उनकी व्युच्छित्ति होजानेपर सासादनादि गुणस्थानोंमें उनका संवर होजाया करता है। ये प्रकृति १६ हैं.। - मिथ्यात्व १ नपुंसक वेद अध्याय १ "सोलसपणवीसणभं दस चउ छक्केक बंधवोच्छिण्णा । दुगतीस चदुरपुव्वे पण सोळस जोगिणो एको ॥” इति । जिस गुणस्थानमें जिन प्रकृतियोंकी बंधन्युच्छित्ति बताई है उस गुणस्थानतक उनका बंध हुआ करता है; आगेक गुणस्थानोंमें उनका बंध नहीं होता । अतएव वहांपर उनका संवर माना जाता है। प्रथमादि गुणस्थानोंमेंसे किसमें कितनी प्रकृतियोंकी बंधव्युच्छित्ति होती है सो इस प्रकार है-१-१६, २-२५, ३-०, ४-१०, ५-१, ६-६, ७-१, ८-३६, ९-५, १०-१६, ११-१२, १३-१। .
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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