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________________ अनमार २४१ अध्याय AMBESTORE जाता । इस प्रकार ये छह नय हैं- शुद्ध निश्चय, अशुद्ध निश्चय, शुद्ध सद्भूत, अशुद्ध सद्भूत, अनुपचरितासद्भूत, उपचरिता सद्भूत । जो अध्यात्मशास्त्रका रहस्य जाननेवाले हैं उन्होंने इनको नयचक्र- समस्त नयोंका मूलभूत बताया है। श्रुतज्ञानके अंशविशेषको अथवा श्रुतज्ञानियोंके अभिप्रायको नय कहते हैं। अतएव नयके अनेक भेद हैं। फिर भी यहां पर हमने उसके अध्यात्मभाषा के द्वारा संक्षेपमें मूल छह भेद बताये हैं। दूसरे ग्रंथोंमें आगमभाषा के द्वारा इन्ही नयोंके नैगमादिक सात मूल भेद गिनाये हैं । नय समीचीन नहीं, मिथ्या है, इस शंकाका दो श्लोकों में निरसन करते हैं । अनेकान्तात्मकादर्थादपोद्धृत्याञ्जसान्नयः । तत्प्राप्त्युपायमेकान्तं तदंशं व्यावहारिकम् ॥ १०८ ॥ प्रकाशयन्न मिथ्या स्याच्छब्दात्तच्छास्त्रवत् स हि । मिथ्याऽनपेक्षोऽनेकान्तक्षेपान्नान्यस्तदत्ययात् ॥ १०९ ॥ श्रुतज्ञान व्यवसायरूप - निश्चयात्मक है। उसका अपने विषयके एक देशमें जो अभिप्राय है उसीको नय कहते हैं । अत एव वह भी सत्य है - वह मिथ्या नहीं हो सकता । क्योंकि जिस प्रकार शब्दसे उसके अंश - शब्द के अवयव प्रकृति प्रत्यय आदिमेंसे किसी भी एक की भिन्न रूपमें विवक्षा करके बतानेवाला व्याकरण शास्त्र मिथ्या नहीं हो सकता उसी प्रकार श्रुतज्ञानके विषयभूत पदार्थके अंशोंमेंसे किसी भी एककी भिन्न रूपसे कल्पना कर प्रकाशित करनेवाला नय भी मिथ्या नहीं हो सकता। जिस प्रकार " देवदत्त रसोई बना रहा है " इत्यादि शब्द अनेकांतात्मक होते हैं - उनमें प्रकृति प्रत्यय आदि अनेक धर्म पाये जाते हैं, और यथार्थमें समीचीन हैं; उसी प्रकार श्रुतज्ञानका विषयभूत पदार्थ भी अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व सामान्य सामानाधिकरण्य विशेषण विशेष्य प्रभृति अनेक १११
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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