SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनगार ANSDASAREASONERakakaka बुद्ध-ज्ञानरूप परिणत तथा एक स्वभाववाले हैं । इसको शुद्ध निश्चय नय कहते हैं। और सगद्वेषादि परिणामस्वरूप ही आत्मा है, इसको अशुद्ध निश्चय नय कहते हैं। .व्यवहार नयके दो भेद हैं; एक सद्भूत, दूसरा असद्भूत । इन दोनों ही का उद्देशपूर्वक लक्षण बताते हैं: - सद्भूतेतरभेदायवहारः स्याद् द्विधा भिदुपचारः। . गुणगुणिनोरभिदायामपि सद्भूता विपर्ययादितरः ॥ १०४ ॥ सद्भुत और असद्भुत इस तरह व्यवहार नयके दो भेद हैं । गुण और गुणीमें अभेद रहते हुए भी भेदकी कल्पना करना इसको सद्भूत व्यवहार नय कहते हैं। और इसके विरुद्ध-भिन्न वस्तुओंमें अभेदकी कल्पना करनेको सद्भूतव्यवहार नय कहते हैं। सद्भूत व्यवहार नयके भी दो भेद हैं- शुद्ध और अशुद्ध । इन दोनोंका उद्देश बताते हुए, शुद्ध सद्भुत के उल्लेख-आकार और पर्यायवाचक शब्दोंको बताते हैं। - सद्भूतः शुद्धेतरभेदाद् द्वेधा तु चेतनस्य गुणाः । केवलबोधादय इति शुद्धोऽनुपचरितसंज्ञोसौ ॥१.५॥ . सद्भूत व्यवहार नय भी दो प्रकारका है, एक शुद्ध दूसरा अशुद्ध । “ केवलज्ञानादिक-असहाय ज्ञानदर्शन प्रभूति गुण चेतन-जीवके हैं" इसको शुद्ध सद्भुत व्यवहार नय कहते हैं । इसका दूसरा नाम अनुप्रचरित भी है। आगेके पद्यके पूर्वाध अशुद्ध सद्भुत व्यवहार नयका आकार और नाम बताते हैं। तथा उत्तरार्धमें अनुपचरित असंदभुत व्यवहार नयका आकार दिखाते हैं: अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy